हालांकि, टीम को क्वार्टर फाइनल में जर्मनी के खिलाफ हार का सामना करना पड़ा था, जहां अर्चना ही एकमात्र पैडलर थीं जिन्होंने अपना गेम जीता था।
भारतीय महिला टेबल टेनिस टीम ने ओलंपिक के इतिहास में पहली बार राउंड ऑफ-16 से आगे बढ़ने का कारनामा किया था, लेकिन टीम को क्वार्टर फाइनल में हार का सामना करना पड़ा। अर्चना ने इस उपलब्धि के बावजूद खेल छोड़ने का निर्णय लिया है और विदेश में अध्ययन करने की दिशा में कदम बढ़ाया है।
पेरिस ओलंपिक के बाद अर्चना ने अपने कोच अंशुल गर्ग से आगामी खेलों में पदक की संभावनाओं पर चर्चा की, और कोच ने उन्हें ईमानदारी से बताया कि यह मुश्किल होगा। अंशुल गर्ग के अनुसार, अर्चना ने पहले ही विदेश में पढ़ाई करने का निर्णय ले लिया था और जब वह मन बना लेती हैं, तो बदलना कठिन होता है।
अर्चना के चयन को लेकर विवाद था, लेकिन उन्होंने अपने प्रदर्शन से टीम को एक गेम जीताकर दिखाया। उन्हें ओलिंपिक गोल्ड क्वेस्ट और अन्य प्रायोजकों का समर्थन मिला, लेकिन अब उन्होंने पढ़ाई को अपने करियर के रूप में चुनने का निर्णय लिया है।
अर्चना की प्रतिभा और अकादमिक सफलता की भी सराहना की गई है। उनके पिता गिरीश ने बताया कि अर्चना ने अर्थशास्त्र में स्नातक की पढ़ाई की है और हाल ही में अंतरराष्ट्रीय संबंधों में मास्टर डिग्री प्राप्त की है। 15 वर्षों तक टेबल टेनिस खेलने के बाद, अर्चना ने अब अपने दूसरे जुनून – पूर्णकालिक अध्ययन – को आगे बढ़ाने का फैसला किया है।
टेबल टेनिस की वित्तीय स्थिरता को लेकर चिंताएं हैं, लेकिन अर्चना के कोच ने खेल की आजीविका की स्थिति को देखते हुए उनके निर्णय को समझा।