महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा मोड़: राज और उद्धव ठाकरे एक मंच पर
मराठी विजय दिवस बना सियासी मेल का बहाना
आज मुंबई के वर्ली में एक खास जनसभा आयोजित की जा रही है, जहां करीब 20 साल बाद राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे एक साथ एक ही मंच पर दिखेंगे। पहले यह रैली हिंदी भाषा विरोध को लेकर रखी गई थी, लेकिन सरकार के फैसले बदलने के बाद अब इसे “मराठी विजय दिवस” का नाम दे दिया गया है। इस आयोजन के जरिए मराठी अस्मिता और राजनीतिक ताकत के प्रदर्शन का प्रयास किया जा रहा है। जगह-जगह पोस्टर लगाए गए हैं जिनमें लिखा है – “हम आपकी ओर से संघर्ष कर रहे थे, आइए नाचते-गाते हुए, हम आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।” इससे स्पष्ट है कि लोगों को इस जनसभा में आकर्षित करने के लिए पूरी तैयारी की गई है।
दोनों दल अस्तित्व के संकट से जूझते हुए
राज ठाकरे ने 2005 में शिवसेना से अलग होकर 2006 में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) बनाई थी। उनका सबसे अच्छा चुनावी प्रदर्शन 2009 में रहा था, जब उनकी पार्टी ने 13 सीटें जीती थीं। इसके बाद पार्टी का ग्राफ लगातार गिरता गया। 2014, 2019 और 2024 के विधानसभा चुनावों में पार्टी को क्रमशः 1, 1 और 0 सीटें मिलीं। आज की तारीख में मनसे के पास कोई विधायक, पार्षद या सांसद नहीं है।
दूसरी ओर, उद्धव ठाकरे की शिवसेना भी 2019 में बीजेपी से अलग होने के बाद लगातार कमजोर होती गई। कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन करने से पार्टी के भीतर मतभेद और असंतोष बढ़ा। अंततः एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में विद्रोह हुआ और पार्टी का नाम, चिन्ह और नेतृत्व तीनों ही उनसे छिन गए। 2019 में 57 विधायक जीतने वाली शिवसेना अब 2024 में सिर्फ 20 पर सिमट गई।
निकाय चुनाव से पहले गठबंधन की कवायद
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मुंबई महानगरपालिका (BMC) के आगामी चुनाव में यह रैली बड़ा संकेत है। BMC का बजट कई राज्यों की सरकारों से ज्यादा है, इसलिए हर पार्टी इस पर कब्जा चाहती है। राज और उद्धव ठाकरे के पास यही सबसे बड़ा मौका है कि वे एक साथ आकर अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन वापस पाने की कोशिश करें। यह गठबंधन दोनों के लिए अस्तित्व बचाने की लड़ाई भी है।
बीजेपी के लिए नई चुनौती या मौका?
सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या इन दोनों नेताओं का साथ आना बीजेपी के लिए खतरा बनेगा या फिर कोई मौका? महाराष्ट्र में बीजेपी हमेशा से हिंदुत्व की राजनीति करती आई है। बाल ठाकरे और अटल बिहारी वाजपेयी के गठबंधन से 1996 में मनोहर जोशी की अगुवाई में पहली सरकार बनी थी। यह गठबंधन 2019 में टूट गया और बीजेपी ने अकेले दम पर 2024 में 132 सीटें जीतीं, जो उसका अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है।
अब अगर राज और उद्धव एक साथ आते हैं तो मराठी अस्मिता और हिंदुत्व दोनों मुद्दों पर बीजेपी को सीधी चुनौती मिल सकती है। हालांकि ये भी मुमकिन है कि राज ठाकरे की मध्यस्थता से उद्धव ठाकरे और बीजेपी के बीच कोई समझौता हो जाए।
प्रभाव सीमित, लेकिन उत्साह असीम
हालांकि दोनों भाइयों का प्रभाव मुख्य रूप से मुंबई और उसके आसपास के इलाकों तक सीमित है। ग्रामीण इलाकों में इनकी पकड़ अपेक्षाकृत कम है। बावजूद इसके, दोनों का एक मंच पर आना पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए बड़ा संदेश है और इससे दोनों दलों के कार्यकर्ताओं में उत्साह की लहर देखी जा रही है।
निष्कर्ष
भले ही यह मंच साझा करना महज एक सांस्कृतिक आयोजन के बहाने किया गया हो, लेकिन इसके राजनीतिक निहितार्थ बेहद गहरे हैं। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह साझेदारी किसी स्थायी गठबंधन की ओर बढ़ती है या फिर यह सिर्फ एक रणनीतिक कदम था।