कच्चे धागों का त्यौहार रक्षा बंधन, जिसे राखी भी कहा जाता है, एक हिंदू त्योहार है जो भारत में भाईचारे और प्रेम के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार सामान्यतः श्रावण मास की पूर्णिमा को, जो कि अगस्त के अंत में आती है, मनाया जाता है। रक्षा बंधन शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – “रक्षा”, जिसका अर्थ है “सुरक्षा”, और “बंधन”, जिसका अर्थ है “बांधना”।
रक्षाबंधन मनाए जाने के कुछ प्रमुख कारण
- सुरक्षा का प्रतीक
बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और भलाई की कामना करते हुए उनकी कलाई पर पवित्र धागा या राखी बांधती हैं। इसके बदले में, भाई अपनी बहनों की रक्षा करने का वचन देते हैं और उन्हें उपहार भी देते हैं। - भाई-बहनों के बीच बंधन का जश्न
यह त्योहार भाई-बहनों के बीच अटूट प्रेम और स्नेह के बंधन का प्रतीक है। कुछ संस्कृतियों में, बहनें राखी बांधने से पहले उपवास भी रखती हैं। - एकता को बढ़ावा देना
20वीं सदी की शुरुआत में, नोबेल पुरस्कार विजेता कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने 1905 में बंगाल के विभाजन के विरोध में रक्षाबंधन का उत्सव मनाने को प्रोत्साहित किया। उनका मानना था कि राखी केवल जैविक भाई-बहनों के बीच ही नहीं, बल्कि विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों के बीच भी सुरक्षा और एकता का प्रतीक हो सकती है। इस प्रयास के तहत, हिंदू और मुसलमानों ने एक-दूसरे की कलाई पर राखी बांधकर एकता का प्रदर्शन किया।
क्या है रक्षाबंधन
भाई और बहन के बीच का बंधन बहुत ही खास होता है और इसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है। भाई-बहन का रिश्ता असाधारण होता है और इसे दुनिया के हर कोने में महत्व दिया जाता है। खासकर भारत में, यह रिश्ता और भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि यहां “रक्षाबंधन” नामक एक त्योहार भाई-बहन के प्यार को समर्पित है।
यह एक विशेष हिंदू त्योहार है जो भारत और नेपाल जैसे देशों में भाई और बहन के बीच प्रेम का प्रतीक माना जाता है। रक्षाबंधन का यह पर्व हिंदू पंचांग के श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जो आमतौर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर के अगस्त महीने में आता है।
रक्षाबंधन का अर्थ
यह त्योहार दो शब्दों “रक्षा” और “बंधन” से मिलकर बना है। संस्कृत के अनुसार, इसका अर्थ है “सुरक्षा का बंधन”। जहां “रक्षा” का मतलब सुरक्षा होता है और “बंधन” का अर्थ है बांधना। यह त्योहार भाई-बहन के रिश्ते के शाश्वत प्रेम का प्रतीक है, जो सिर्फ रक्त संबंधों तक सीमित नहीं है। इसे चचेरे भाइयों, बहन और भाभी, बुआ और भतीजे, और अन्य ऐसे रिश्तों के बीच भी मनाया जाता है।
भारत में विभिन्न धर्मों में रक्षाबंधन का महत्व
हिंदू धर्म – यह त्योहार मुख्य रूप से भारत के उत्तरी और पश्चिमी हिस्सों में हिंदुओं द्वारा मनाया जाता है, साथ ही नेपाल, पाकिस्तान और मॉरीशस जैसे देशों में भी इसे मनाया जाता है।
जैन धर्म – जैन समुदाय में भी इस पर्व को सम्मानित किया जाता है, जहां जैन साधु-पुरोहित भक्तों को रक्षा सूत्र प्रदान करते हैं।
सिख धर्म – भाई-बहन के प्रेम को समर्पित इस त्योहार को सिख समुदाय “रखड़ी” या “राखड़ी” के रूप में मनाता है।
मुस्लिम धर्म – मुस्लिम धर्म के लोगो के द्वारा भी इस त्यौहार को बहुत ही प्रेम और आदर के साथ मनाया जाता है|
राखी का इतिहास
राखी का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है और इसकी उत्पत्ति से कई पौराणिक कथाएं और ऐतिहासिक घटनाएं जुड़ी हुई हैं। यह त्योहार भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को मनाने का प्रतीक है। राखी के इतिहास से संबंधित कुछ प्रमुख कथाएं और घटनाएं निम्नलिखित हैं:
1. द्रौपदी और भगवान कृष्ण
महाभारत के समय की एक प्रचलित कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण ने युद्ध में शिशुपाल को मारने के बाद अपनी उंगली काट ली थी। जब द्रौपदी ने यह देखा, तो उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा फाड़कर कृष्ण की उंगली पर बांध दिया। इसके बदले में, भगवान कृष्ण ने उनकी रक्षा करने का वचन दिया। यह माना जाता है कि इसी घटना से रक्षा बंधन की परंपरा की शुरुआत हुई।
2. इंद्र देव और शची
भविष्य पुराण की एक प्राचीन कथा के अनुसार, एक बार देवताओं और दानवों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। भगवान इंद्र, जो आकाश, वर्षा और वज्र के प्रधान देवता हैं, देवताओं की ओर से युद्ध कर रहे थे, लेकिन उन्हें शक्तिशाली दानव राजा बलि से कड़ी चुनौती मिल रही थी। युद्ध लंबे समय तक चलता रहा और कोई निर्णायक परिणाम नहीं निकला। यह देखकर इंद्र की पत्नी शची ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। विष्णुजी ने उन्हें एक पवित्र कच्चे धागे से बना ब्रेसलेट दिया। शची ने वह पवित्र धागा भगवान इंद्र की कलाई पर बांध दिया, जिससे इंद्र ने अंततः दानवों को पराजित कर अमरावती को पुनः प्राप्त कर लिया।
त्योहार के प्रारंभिक काल में, इन पवित्र धागों को ताबीज माना जाता था, जिन्हें महिलाएं अपने पति की युद्ध पर जाते समय उनकी सुरक्षा के लिए बांधती थीं। उस समय, ये पवित्र धागे केवल भाई-बहन के संबंधों तक सीमित नहीं थे, जैसा कि आज के समय में है।
3. राजा बलि और देवी लक्ष्मी
भागवत पुराण और विष्णु पुराण के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने दानव राजा बलि से तीनों लोकों को जीत लिया, तो बलि ने उनसे अपने महल में रहने का अनुरोध किया। भगवान विष्णु ने यह अनुरोध स्वीकार कर लिया और दानव राजा बलि के साथ रहने लगे। हालांकि, भगवान विष्णु की पत्नी, देवी लक्ष्मी, चाहती थीं कि उनके पति वैकुंठ वापस लौट जाएं। इसलिए, उन्होंने राजा बलि की कलाई पर राखी बांधी और उन्हें अपना भाई बना लिया। जब बलि ने उन्हें उपहार के रूप में कुछ मांगने को कहा, तो देवी लक्ष्मी ने अपने पति को वचन से मुक्त कर उन्हें वैकुंठ लौटने देने का अनुरोध किया। बलि ने उनकी यह इच्छा स्वीकार कर ली, और भगवान विष्णु अपनी पत्नी देवी लक्ष्मी के साथ अपने स्थान वैकुंठ वापस लौट गए।
4. संतोषी माता की कथा
हिंदू धर्म में संतोषी माता की पूजा के साथ भी रक्षाबंधन की एक कथा जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि गणेश जी की दो पत्नियों, ऋद्धि और सिद्धि, ने अपने पुत्रों शुभ और लाभ के साथ राखी का त्योहार मनाने की इच्छा व्यक्त की थी। जब शुभ और लाभ ने रक्षाबंधन मनाने की इच्छा जताई, तो गणेश जी ने उन्हें बहन के रूप में संतोषी माता को जन्म दिया। इस प्रकार, रक्षाबंधन के साथ संतोषी माता की पूजा भी शुरू हुई।
5. यम और यमी (यमुनाजी)
एक अन्य कथा यमराज और उनकी बहन यमी (यमुनाजी) से संबंधित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यमुनाजी ने अपने भाई यमराज की कलाई पर राखी बांधी और अमरता का आशीर्वाद मांगा। यमराज ने अपनी बहन को वचन दिया कि जो भाई इस दिन अपनी बहन से राखी बंधवाएगा, उसे लंबी उम्र और सुरक्षा का आशीर्वाद मिलेगा।
6. अमृत मंथन
समुद्र मंथन के दौरान, देवताओं और दानवों के बीच अमृत को लेकर विवाद हुआ। तब भगवान विष्णु ने अमृत कलश को सुरक्षित रखने के लिए अपनी शक्ति का प्रयोग किया। इस घटना को भी रक्षाबंधन से जोड़ा जाता है, जहां राखी को सुरक्षा और अमरता का प्रतीक माना गया है।
7. सुभद्रा और कृष्ण
कहा जाता है कि भगवान कृष्ण की बहन सुभद्रा ने भी उनकी कलाई पर राखी बांधी थी। सुभद्रा ने अपने भाई की सुरक्षा और सफलता के लिए प्रार्थना की। इस घटना को भी रक्षाबंधन की परंपरा का आधार माना जाता है।
ये कथाएं रक्षाबंधन के महत्व को उजागर करती हैं और यह बताती हैं कि यह त्योहार केवल भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह सुरक्षा, समर्पण और एकता के आदर्शों को भी दर्शाता है।
रक्षाबंधन त्योहार की उत्पत्ति
रक्षाबंधन का त्योहार सदियों पहले शुरू हुआ था और इसके साथ कई कहानियां जुड़ी हुई हैं। ऐतिहासिक घटनाएं कथाओं से संबंधित कुछ प्रमुख कथाएं इस प्रकार हैं:
1. शिवाजी और जीजाबाई-
मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी की मां जीजाबाई ने उन्हें युद्ध में जाते समय उनकी कलाई पर राखी बांधी थी। इस राखी का उद्देश्य शिवाजी की रक्षा करना और उन्हें साहस और शक्ति प्रदान करना था। जीजाबाई ने शिवाजी को यह वचन भी दिलाया कि वे अपने लोगों की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहेंगे।
2. रानी कर्णावती और हुमायूं
मध्यकालीन इतिहास में, मेवाड़ की रानी कर्णावती और मुगल सम्राट हुमायूं की कहानी प्रचलित है। जब रानी कर्णावती को बहादुर शाह द्वारा अपने राज्य पर हमले का भय हुआ, तो उन्होंने हुमायूं को राखी भेजी और उसे अपना भाई मानकर सहायता की याचना की। हुमायूं ने राखी की मर्यादा रखते हुए रानी कर्णावती की सहायता के लिए अपनी सेना भेजी।
3. अलेक्जेंडर और पुरु
एक अन्य कथा के अनुसार, जब महान योद्धा सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया, तो उसकी पत्नी ने भारतीय राजा पुरु को राखी बांधी और उसे अपने पति को युद्ध में न मारने का वचन देने का अनुरोध किया। पुरु ने राखी की मर्यादा रखते हुए सिकंदर को जीवनदान दिया।
4. राखी और स्वतंत्रता संग्राम
भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, रवींद्रनाथ टैगोर ने राखी को हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बनाया। 1905 में बंगाल विभाजन के समय, टैगोर ने राखी को सामाजिक एकता और सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक मानते हुए हिंदू और मुस्लिमों के बीच राखी बांधने का आह्वान किया।
राखी का इतिहास इन कथाओं और घटनाओं के माध्यम से भारतीय संस्कृति में भाई-बहन के रिश्ते के महत्व को दर्शाता है। समय के साथ, यह त्योहार न केवल भाई-बहन के बीच, बल्कि समाज में प्रेम, एकता और सौहार्द का प्रतीक बन गया है।
रक्षाबंधन का सामाजिक महत्त्व
राखी का त्योहार केवल भाई-बहन के बीच प्रेम और स्नेह का प्रतीक नहीं है, बल्कि इसके और भी कई महत्वपूर्ण पहलू हैं जो समाज और संस्कृति पर गहरा प्रभाव डालते हैं। यहां राखी के कुछ अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं का वर्णन किया गया है:
1. सामाजिक एकता और सौहार्द-
रक्षाबंधन समाज में एकता और सौहार्द का प्रतीक है। यह त्योहार न केवल भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत करता है, बल्कि विभिन्न जाति, धर्म, और समुदायों के लोगों को भी एकजुट करता है। विभिन्न समुदायों के बीच एक-दूसरे की कलाई पर राखी बांधने की परंपरा से सामाजिक समरसता को बढ़ावा मिलता है।
2. रक्षा और सुरक्षा का प्रतीक-
राखी का धागा भाई द्वारा बहन की सुरक्षा का वचन होता है। यह सुरक्षा का प्रतीक बनकर हर प्रकार की विपत्ति से रक्षा करने की भावना को प्रकट करता है। यह सिर्फ व्यक्तिगत सुरक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज और राष्ट्र की सुरक्षा की भावना को भी मजबूत करता है।
3. महिलाओं के सशक्तिकरण का प्रतीक-
रक्षाबंधन के अवसर पर भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं और उनकी इच्छाओं और सपनों का सम्मान करते हैं। यह महिलाओं के सशक्तिकरण और उनकी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में सहायता प्रदान करने का प्रतीक भी बनता है। इस प्रकार, यह त्योहार महिलाओं की गरिमा और अधिकारों को भी उजागर करता है।
4. पारिवारिक संबंधों को मजबूत करना-
रक्षाबंधन परिवार के सदस्यों को एक साथ लाने का एक अवसर है। यह त्योहार न केवल भाई-बहन के बीच संबंधों को मजबूत करता है, बल्कि परिवार के अन्य सदस्यों जैसे चचेरे भाई, भाभी, और बुआ-भतीजा के बीच भी प्रेम और स्नेह को बढ़ाता है। इस प्रकार, यह परिवारिक एकता और सहयोग का संदेश देता है।
5. धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व-
राखी का त्योहार धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी रखता है। यह हिंदू धर्म के विभिन्न पौराणिक कथाओं और धार्मिक ग्रंथों से जुड़ा हुआ है। इसके साथ ही, यह त्योहार भारतीय संस्कृति और परंपराओं की धरोहर को जीवंत रखता है और आने वाली पीढ़ियों को इन मूल्यों से अवगत कराता है।
6. धार्मिक कर्मकांड और अनुष्ठान-
रक्षाबंधन के दिन भाई-बहन पूजा करते हैं और धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। यह त्योहार आध्यात्मिक शुद्धता और धार्मिक आस्था का प्रतीक भी है, जिसमें भगवान की आराधना और उनके आशीर्वाद की प्रार्थना की जाती है।
रक्षाबंधन का महत्व केवल भाई-बहन के रिश्ते तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज, संस्कृति और राष्ट्र की एकता और प्रगति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
इस त्योहार के मनाने का कारण-
रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के बीच कर्तव्य और संबंध का प्रतीक होता है। यह अवसर उन सभी प्रकार के भाई-बहन के रिश्तों को मनाने के लिए है, चाहे वे जैविक रूप से संबंधित न भी हों।
इस दिन, बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है ताकि उसकी समृद्धि, स्वास्थ्य और भलाई की प्रार्थना की जा सके। बदले में, भाई उपहार देता है और अपनी बहन को किसी भी हानि से बचाने और हर स्थिति में उसकी रक्षा करने का वचन देता है। यह त्योहार दूर के परिवार के सदस्य, रिश्तेदारों या चचेरे भाई-बहनों के बीच भी मनाया जाता है।
राखी बांधने की परम्परागत विधि
रक्षाबंधन को सही तरीके से मनाने के लिए निम्नलिखित विधियाँ और परंपराएं अपनाई जा सकती हैं:
1. तैयारी–
राखी और पूजन सामग्री : राखी, कुमकुम (रंग), चावल, मिठाई, दीपक और पानी की थाली तैयार करें।
साफ-सफाई : राखी बांधने से पहले स्थल को साफ और स्वच्छ करें।
2. राखी बांधने की प्रक्रिया-
पूजा का आयोजन : सबसे पहले, पूजा स्थल पर दीपक जलाएं और भगवान की पूजा करें। इसे भव्यता और धार्मिकता प्रदान करता है।
राखी की पूजा : बहन अपनी राखी को भगवान के सामने रखे और उसकी पूजा करें। कुमकुम, चावल और फूल का प्रयोग करें।
राखी बांधना : बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधे। राखी बांधते समय भाई की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें।
अर्पण : राखी बांधने के बाद, भाई को मिठाई खिलाएं और उसे आशीर्वाद दें।
3. भाई की ओर से-
उपहार देना : भाई अपनी बहन को उपहार दें और उसकी सुरक्षा और सुख-समृद्धि का वचन दें।
प्रेरणा और आशीर्वाद : भाई बहन को अच्छी सलाह और आशीर्वाद प्रदान करें।
रक्षाबंधन के दौरान अन्य परंपराएं-
1. कुमकुम और चावल का प्रयोग:- राखी बांधते समय कुमकुम और चावल का प्रयोग करना महत्वपूर्ण है। यह न केवल राखी के संस्कार को पूर्ण करता है बल्कि पूजा की धार्मिकता को भी बढ़ाता है।
2. स्नेह और प्रेम का आदान-प्रदान:- रक्षाबंधन का उद्देश्य भाई-बहन के रिश्ते को सशक्त बनाना है। इस अवसर पर भाई-बहन एक-दूसरे के साथ समय बिताएं और एक-दूसरे को शुभकामनाएं दें।
3. परिवार और मित्रों के साथ:- इस दिन परिवार और मित्रों के साथ समय बिताएं और त्योहार का आनंद लें। साथ ही, दूसरों के साथ भी प्यार और स्नेह बांटें।
4. सांस्कृतिक रीतियों का पालन:- विभिन्न क्षेत्रों और संस्कृतियों में रक्षाबंधन की अलग-अलग रीतियां हो सकती हैं। अपने क्षेत्रीय और पारंपरिक रीतियों का पालन करना भी उचित होता है।
रक्षाबंधन के दिन, यह महत्वपूर्ण है कि आप इस त्योहार की धार्मिकता और परंपराओं का सम्मान करें और अपने रिश्तों में स्नेह और प्रेम को बनाए रखें।