नई दिल्ली: ‘अगर आप मानते हैं कि मैं ईमानदार हूं, तो मुझे भारी संख्या में वोट दें। जब तक दिल्ली की जनता का फैसला नहीं आता, मैं मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठूंगा। मैं दो दिन बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दूंगा। फरवरी में चुनाव होने हैं, और मेरी मांग है कि दिल्ली के चुनाव महाराष्ट्र चुनाव के साथ नवंबर में कराए जाएं।’ यह बयान दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का है। तिहाड़ जेल से छूटने के 40 घंटे बाद ही उन्होंने अपने इस्तीफे का ऐलान कर सबको हैरान कर दिया। अब सवाल उठ रहा है कि जब वो तिहाड़ जेल में थे तब इस्तीफा क्यों नहीं दिया? और अब अचानक इस फैसले के पीछे की वजह क्या है?
केजरीवाल के इस्तीफे की अंदरूनी कहानी:
अगर आप सोच रहे हैं कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने यूं ही यह बड़ा फैसला लिया, तो ऐसा नहीं है। केजरीवाल के बारे में माना जाता है कि वह सोच-समझकर ही कोई कदम उठाते हैं। अगर ऐसा न होता तो वह पिछले 177 दिन से तिहाड़ जेल में बंद नहीं रहते। इस दौरान उन्हें लोकसभा चुनाव प्रचार के लिए 21 दिन की पैरोल जरूर मिली थी, लेकिन बाकी समय वह जेल में ही थे। बीजेपी और विपक्ष लगातार उन पर इस्तीफे का दबाव बना रहे थे, लेकिन तब उन्होंने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया। उस समय तय हुआ था कि केजरीवाल जेल से ही अपनी सरकार चलाएंगे। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट से मिली सशर्त जमानत के बाद जब वह रिहा हुए, तो कुछ ही घंटों बाद इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट की सशर्त जमानत:
अरविंद केजरीवाल की जेल से रिहाई के बाद सभी को लगा कि अब दिल्ली की सरकार सामान्य रूप से चलेगी। लेकिन उनकी रिहाई के कुछ ही घंटों बाद इस्तीफे की घोषणा ने सभी को चौंका दिया। सवाल उठ रहा है कि आखिर उन्हें ऐसा कदम क्यों उठाना पड़ा? विशेषज्ञों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट की ओर से जमानत में लगाए गए कई शर्तों के कारण उन पर इस्तीफे का दबाव बढ़ा।
सीएम नहीं ले सकते थे बड़े फैसले:
कानूनी जानकारों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की जमानत की शर्तें मुख्यमंत्री के रूप में अरविंद केजरीवाल को पूरी स्वतंत्रता से काम करने नहीं देतीं। उन्हें सचिवालय या मुख्यमंत्री कार्यालय जाने की अनुमति नहीं थी, और उपराज्यपाल से मंजूरी के बिना किसी फाइल पर हस्ताक्षर भी नहीं कर सकते थे। इससे सरकार को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता था।