Statue Of Justice: 1 जुलाई 2024 से भारत में आईपीसी, सीआरपीसी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह तीन नए कानून लागू किए गए हैं—भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, और भारतीय साक्ष्य अधिनियम। इसी के तहत न्याय की देवी की मूर्ति में भी बदलाव किया गया है। अब मूर्ति की आंखों से पट्टी हटा दी गई है, जिसे मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की सलाह पर किया गया है।
यह बदलाव देश की निचली अदालतों, हाई कोर्ट, और सुप्रीम कोर्ट में दिखाई देने वाली न्याय की देवी की मूर्ति के लिए एक नई पहचान लेकर आया है। पहले, मूर्ति की आंखों पर पट्टी बंधी रहती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। इस नई मूर्ति की फोटो इंटरनेट पर तेजी से वायरल हो रही है, और इसके साथ ही कोर्ट और वकीलों के चेंबर्स में इस बदलाव की चर्चा हो रही है। सुप्रीम कोर्ट की लाइब्रेरी में भी यह नई मूर्ति पहली बार स्थापित की गई है, लेकिन शीर्ष अदालत की तरफ से इस मामले में अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
हाथ में संविधान, तलवार की जगह नई पहचान
जानकारी के अनुसार, न्याय की देवी की मूर्ति की आंखों से पट्टी हटाने के साथ-साथ अब उनके हाथ में से तलवार भी हटा दी गई है। नई मूर्ति में अब हाथ में संविधान की किताब दिखाई देगी, जबकि तराजू पहले की तरह बना रहेगा। यह बदलाव एक प्रतीक के रूप में न्याय प्रणाली में मौलिक परिवर्तन का संकेत देता है।
क्यों हुआ यह बदलाव?
1 जुलाई 2024 को लागू होने वाले इन नए कानूनों में त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए प्राथमिकी (FIR) से लेकर फैसले तक सभी प्रक्रियाओं के लिए समय सीमा निर्धारित की गई है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, न्याय की देवी के इस नए प्रतीक के पीछे एक सोच यह है कि “कानून अंधा” नहीं रहेगा।
इस ऐतिहासिक कदम का उद्देश्य कानून मंत्रालय की तरफ से ब्रिटिशकालीन विरासत को समाप्त करना और देश की सांस्कृतिक पहचान से जुड़ना है। यह बदलाव न केवल न्याय की देवी की मूर्ति को नया रूप देगा, बल्कि न्याय प्रणाली के प्रति जनता की धारणा में भी बदलाव लाएगा।