राजनीति से संन्यास लेना, नई पार्टी की शुरुआत करना, या किसी भरोसेमंद पार्टी में शामिल होना।यह सब अटकले चंपई सोरेन को लेकर लगाईं जा रही है |पिछले 31 जनवरी 2024 को हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद चंपई सोरेन ने मुख्यमंत्री का पद संभाला था। हालांकि, हेमंत सोरेन को जमानत मिलने के बाद पार्टी के निर्देश पर चंपई को पद छोड़ना पड़ा और उन्होंने 3 जुलाई 2024 को इस्तीफा दे दिया।
पिछले कुछ दिनों से कयास लगाए जा रहे थे कि चंपई सोरेन बीजेपी में शामिल हो सकते हैं। हालाँकि, रविवार को दिए उनके बयान से यह स्पष्ट हो गया कि वह JMM के साथ नहीं रहेंगे। चंपई सोरेन की छवि साफ-सुथरी रही है और उन्हें झारखंड के शीर्ष आदिवासी नेताओं में गिना जाता है।
बीजेपी के झारखंड में वरिष्ठ नेता और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अमर कुमार बाउरी का कहना है, “चंपई सोरेन एक बड़े नेता हैं। उन्हें पार्टी में शामिल करने का निर्णय केंद्रीय नेतृत्व को करना है।” वहीं, बीजेपी के प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कहा, “यह चंपई का स्वतंत्र निर्णय है। बीजेपी का इससे कोई लेना-देना नहीं है। अगर वह बीजेपी में आना चाहेंगे, तो केंद्रीय और राज्य नेतृत्व इस पर निर्णय लेंगे।”
प्रतुल शाहदेव ने यह भी कहा कि चंपई सोरेन के बयान से JMM की आंतरिक राजनीति सामने आ गई है। यह स्पष्ट हो गया है कि सोरेन परिवार किसी और को बर्दाश्त नहीं करता, भले ही वह राज्य का पूर्व मुख्यमंत्री ही क्यों न हो।
हालांकि JMM के विधायक सुदिव्य सोनू ने कहा कि चंपई का जाना विचारधारात्मक रूप से JMM को खलेगा, लेकिन कोल्हान क्षेत्र में इससे कोई राजनीतिक नुकसान नहीं होगा। उन्होंने कहा, “कोल्हान के विधायकों के उनके साथ नहीं जाने से यह स्पष्ट है कि वह राजनीतिक रूप से प्रभावी नहीं रहेंगे।”
हेमंत सोरेन ने जेल जाने से पहले मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था और अब वह फिर से मुख्यमंत्री हैं। विश्लेषक मानते हैं कि हेमंत सोरेन आदिवासी मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल हो रहे हैं, और ऐसे में चंपई सोरेन के जाने से पार्टी पर बहुत असर नहीं होगा।
बीजेपी ने हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में 14 में से 8 सीटें जीती हैं, जिससे वह अभी भी झारखंड में सबसे बड़ी पार्टी बनी हुई है। हेमंत सोरेन ने आरोप लगाया कि बीजेपी ने एक आदिवासी नेता को फंसाकर जेल भेजा, जिससे वह आगामी चुनावों में जनभावना का फायदा उठा सकते हैं।राजनीतिक विश्लेषक सुधीर पाल का मानना है कि चंपई के जाने से JMM को अधिक नुकसान नहीं होगा। हेमंत सोरेन आदिवासी मतदाताओं को भावनात्मक रूप से जोड़ने में कामयाब रहे हैं।
झारखंड में 81 विधानसभा सीटों में से 28 सीटें आदिवासियों के लिए सुरक्षित हैं, और पिछले चुनाव में JMM और कांग्रेस के गठबंधन ने इन 28 में से 26 सीटों पर जीत हासिल की थी। चंपई सोरेन का कोल्हान और उसके आसपास की सीटों पर गहरा प्रभाव रहा है, और उनके जाने से बीजेपी की आंतरिक राजनीति भी प्रभावित हो सकती है।
हालांकि, यह अभी स्पष्ट नहीं है कि चंपई सोरेन बीजेपी में जाएंगे या नहीं, लेकिन संकेत ज़रूर मिल रहे हैं। सवाल यह है कि अगर वह बीजेपी में जाते हैं, तो उन्हें क्या मिलेगा। विश्लेषक मानते हैं कि उन्हें मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाया जा सकता है।
सुधीर पाल का कहना है कि चंपई सोरेन के बीजेपी में शामिल होने से पार्टी में मुख्यमंत्री पद के कई दावेदार हो जाएंगे, जिससे राज्य में बीजेपी के कई नेता असहज हो सकते हैं। चंपई सोरेन के आने से बीजेपी को आदिवासी समुदाय के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने में मदद मिल सकती है।अंततः, चंपई सोरेन के भविष्य के राजनीतिक कदमों पर सबकी नजरें टिकी हैं।