यहां के लोग दशहरे पर मातम मनाते हैं, क्योंकि 166 सालों से इस गांव में रावण का पुतला नहीं जलाया गया है। गांव की लगभग 18,000 की आबादी के लोग इस दिन गहरे दुख में डूब जाते हैं। इसका कारण है, 9 लोगों की दर्दनाक मौत। उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के गगोल गांव में दशहरा मनाने पर पाबंदी है।
1857 की क्रांति से जुड़ा दुखद इतिहास
इस गांव की कहानी 1857 की क्रांति से जुड़ी हुई है, जब अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती देने की एक कोशिश की गई थी। इसी साल, गांव में एक पीपल के पेड़ पर 9 लोगों को दशहरे के दिन फांसी दी गई थी। यह वो समय था जब रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहेब, और बेगम हजरतमहल जैसे लोग अंग्रेजों के खिलाफ खड़े हुए थे। गगोल गांव में हुए इस कांड ने लोगों के दिलों में एक गहरी छाप छोड़ी।
आज भी है वह पीपल का पेड़
गगोल गांव में आज भी वह पीपल का पेड़ मौजूद है, जहां 9 लोगों को फांसी दी गई थी। इस पेड़ को देखकर गांव के लोगों के जख्म फिर से हरे हो जाते हैं। बच्चे से लेकर बड़े तक, सभी इस भयानक घटना के बारे में जानते हैं। यही वजह है कि दशहरे पर इस गांव में खुशियों के बजाय मातम का माहौल होता है।