हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा, जबकि पार्टी एग्जिट पोल के परिणामों से उत्साहित थी। चुनाव के प्रचार में कांग्रेस भाजपा की तुलना में काफी पीछे रह गई। भाजपा ने चुनावों की घोषणा से पहले ही चुनावी तैयारी शुरू कर दी थी, जबकि कांग्रेस नेताओं को सूची बनाने के लिए दिल्ली के चक्कर काटने पड़े। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने भी प्रचार में देर से एंट्री की, जिससे कांग्रेस को नुकसान हुआ।
कांग्रेस में गुटबाजी की समस्या भी बड़ी रही। पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा और सांसद कुमारी सैलजा के बीच तनाव खुलकर सामने आया। सैलजा ने खुद को सीएम पद का मजबूत दावेदार माना, जिससे पार्टी में मतभेद बढ़ गए। चुनाव के दौरान हुड्डा समर्थकों द्वारा सैलजा के बारे में की गई अभद्र टिप्पणी से स्थिति और बिगड़ गई। इस विवाद ने सैलजा को प्रचार से दूर कर दिया, हालांकि राहुल गांधी ने उन्हें मंच पर लाकर स्थिति को संभालने की कोशिश की।
इसके अलावा, असंध से कांग्रेस के उम्मीदवार शमशेर गोगी द्वारा दिए गए विवादास्पद बयान ने भी पार्टी की स्थिति को कमजोर किया। गोगी ने कहा कि अगर कांग्रेस जीतती है, तो पहले अपना घर भरेंगे, जिसे भाजपा ने भ्रष्टाचार से जोड़ा और आक्रामक प्रचार शुरू किया। कांग्रेस ने इसे संभालने का प्रयास किया, लेकिन तब तक बहुत नुकसान हो चुका था।
कांग्रेस किसानों, पहलवानों और जवानों के मुद्दों को भी प्रभावी ढंग से नहीं भुना पाई। भाजपा ने पर्ची खर्ची के मुद्दे को उठाया और इसे सफलतापूर्वक प्रचारित किया। कांग्रेस ने इस मुद्दे पर ठोस रणनीति नहीं बनाई, जिससे उनकी स्थिति और खराब हुई। राहुल गांधी ने संविधान के मुद्दे को भुनाने की कोशिश की, लेकिन यह रणनीति भी इस बार काम नहीं आई।
भूपेंद्र हुड्डा को टिकट वितरण और अन्य मामलों में फ्री हैंड देना भी कांग्रेस के लिए समस्या बन गया। सांसद कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला ने इसकी सार्वजनिक आलोचना की। सैलजा ने केवल कुछ सीटों पर प्रचार किया, जिससे पहले से ही विभाजित कांग्रेस को और नुकसान हुआ।