हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 24 के तहत, यदि न्यायालय को लगता है कि कार्यवाही के दौरान पत्नी या पति के पास अलग से कोई आय नहीं है और उन्हें व्यय की आवश्यकता है, तो न्यायालय उस पक्ष द्वारा किए गए आवेदन पर व्यय के लिए कुछ राशि प्रदान करता है। ऐसे व्यय निर्धारित करते समय पक्षों की आय को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
अपीलकर्ता-पत्नी ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत आवेदन करते हुए अपर प्रधान न्यायाधीश-3 फैमिली कोर्ट लखनऊ द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी। उन्होंने तर्क किया कि आवेदन में 20,000 रुपये प्रति माह के अंतरिम भरण-पोषण की मांग की गई थी, लेकिन अदालत ने केवल 8,000 रुपये का आदेश दिया और प्रत्येक सुनवाई पर 100 रुपये प्रदान करने का निर्देश दिया।
यह तर्क किया गया कि फैमिली कोर्ट ने गलत तरीके से मान लिया कि अंतरिम भरण-पोषण केवल साक्ष्य प्रस्तुत करने के बाद ही तय किया जा सकता है, क्योंकि तभी वह पक्षों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का उचित आकलन कर सकेगा।
धारा 24 की समीक्षा करते हुए न्यायालय ने पाया कि राहत की मांग करने वाले पक्ष को लिखित में आवेदन प्रस्तुत करना होगा, जिसे लिखित में चुनौती दी जा सकती है।
जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने कहा,
“यदि कार्यवाही के लिए किसी सबूत की आवश्यकता थी, तो इसे आवेदन के चरण में प्रस्तुत किया जाना चाहिए। फैमिली कोर्ट द्वारा यह कहा गया कि यह सबूत मुख्य मामले में साक्ष्य प्रस्तुत करने के बाद ही प्रस्तुत किया जा सकता है, इस पर कानूनी स्थिति की पूरी तरह से गलतफहमी है।”
न्यायालय ने कहा कि धारा 24 का शीर्षक “कार्यवाही के दौरान भरण-पोषण और व्यय” दर्शाता है कि धारा 24 के तहत कार्यवाही के लिए साक्ष्य आवेदन के समय पर ही प्रस्तुत किए जाने चाहिए, और उन्हें बाद की अवधि के लिए स्थगित नहीं किया जा सकता।
फैमिली कोर्ट द्वारा दी गई एकमुश्त राशि में कुछ ओवरराइटिंग पाए जाने पर, न्यायालय ने आदेश को रद्द कर दिया और फैमिली कोर्ट को धारा 24 के तहत नए सिरे से आवेदन पर निर्णय लेने का निर्देश दियाA
केस टाइटल- विनीता वर्मा बनाम ब्रजनेश कुमार