सुप्रीम कोर्ट के बुलडोज़र एक्शन पर रोक लगाने के फैसले के बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि बुलडोज़र के माध्यम से की गई कार्रवाई न्यायपूर्ण नहीं थी। उन्होंने समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में आरोप लगाया, “बुलडोज़र असंवैधानिक था और इसे लोगों को डराने के लिए इस्तेमाल किया गया। यह जानबूझकर विपक्ष की आवाज़ को दबाने का प्रयास था।”
सुप्रीम कोर्ट द्वारा बुलडोज़र से की जाने वाली प्रॉपर्टी डेमोलिशन पर रोक लगाने के फैसले के बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने न केवल फैसले का स्वागत किया, बल्कि योगी आदित्यनाथ सरकार और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की बुलडोज़र राजनीति पर भी तीखा हमला किया।
अखिलेश यादव ने समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में कहा कि “बुलडोज़र न्याय का तरीका नहीं हो सकता।” उन्होंने इस कार्रवाई को असंवैधानिक बताते हुए आरोप लगाया कि बुलडोज़र का इस्तेमाल लोगों को डराने और विपक्ष की आवाज़ को दबाने के लिए किया जा रहा था। इसके साथ ही, उन्होंने बीजेपी पर यह आरोप भी लगाया कि वह अपने तमाम कार्यक्रमों और रैलियों में बुलडोज़र का इतना महिमामंडन कर रही थी कि यह डर पैदा करने का एक साधन बन गया था।
अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर भी इस फैसले को लेकर एक पोस्ट किया, जिसमें उन्होंने लिखा, “न्याय के सर्वोच्च आदेश ने न केवल बुलडोज़र को ही रोका है, बल्कि उसका दुरुपयोग करने वालों की विध्वंसक राजनीति को भी किनारे लगा दिया है।” उन्होंने आगे कटाक्ष करते हुए कहा, “आज बुलडोज़र के पहिए खुल गए हैं और स्टीयरिंग हत्थे से उखड़ गया है,” जो इस बात का प्रतीक है कि अब बुलडोज़र की राजनीति का अंत हो रहा है।
अखिलेश के इस बयान से स्पष्ट है कि वे सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को न्याय और संविधान की जीत के रूप में देख रहे हैं। उनके अनुसार, बुलडोज़र का इस्तेमाल केवल विपक्ष और निर्दोष नागरिकों को डराने के लिए किया गया था, और अब इस फैसले से बीजेपी की इस नीति को करारा झटका लगा है।
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि बुलडोज़र के इस्तेमाल पर लगी रोक केवल निजी संपत्तियों पर लागू होगी। उन्होंने कहा कि यह आदेश सार्वजनिक सड़कों, फुटपाथों, रेलवे लाइनों, और जलाशयों पर हुए अतिक्रमणों के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाई पर प्रभावी नहीं होगा। इसका मतलब यह है कि इन सार्वजनिक स्थानों पर अवैध अतिक्रमण हटाने के लिए सरकार और संबंधित अधिकारी कार्रवाई कर सकते हैं, जबकि निजी संपत्तियों को गिराने के लिए सुप्रीम कोर्ट की ओर से सख्त प्रक्रिया का पालन किया जाना आवश्यक है।