धरती फिर कांपी, जापान और इंडोनेशिया में भूकंप से दहशत का माहौल
धरती एक बार फिर कांप उठी है। जापान और इंडोनेशिया में मंगलवार को जोरदार भूकंप के झटके महसूस किए गए, जिससे लोगों में दहशत का माहौल फैल गया। दोनों देशों में आए इन झटकों की तीव्रता क्रमशः 5.4 और 5.8 मापी गई।
जापान में फिर हिली ज़मीन
जापान में आए भूकंप की तीव्रता 5.4 रही। इसका केंद्र योनागुनी द्वीप से करीब 48 किलोमीटर दूर और लगभग 124 किलोमीटर गहराई में स्थित था। सबसे ज्यादा असर ओकिनावा शहर में देखा गया, जहां अचानक कंपन महसूस होते ही लोग अपने घरों से बाहर निकल आए।
हालांकि अभी तक किसी तरह के जानमाल के नुकसान की पुष्टि नहीं हुई है, और न ही सुनामी की कोई चेतावनी जारी की गई है, लेकिन लोगों की चिंता कम नहीं हुई। जापान पहले से ही एक बड़े खतरे के साये में है, क्योंकि हाल ही में एक आधिकारिक रिपोर्ट में चेताया गया था कि भविष्य में एक प्रचंड भूकंप जापान को झकझोर सकता है, जिससे भारी तबाही और हजारों लोगों की मौत हो सकती है। सरकार ने लोगों से सतर्क रहने की अपील की है और राहत एजेंसियों को तैयार रहने के निर्देश दिए हैं।
इंडोनेशिया में लगातार दूसरी बार भूकंप
दूसरी ओर, इंडोनेशिया में भी भूकंप के झटके दर्ज किए गए। पश्चिमी आचे प्रांत में आए इस भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 5.8 मापी गई। शुरुआत में भूकंप को 6.2 की तीव्रता का बताया गया था, लेकिन बाद में आंकड़ों की समीक्षा कर इसे संशोधित किया गया। इसका केंद्र सिम्यूलु रीजेंसी में, समुद्र के भीतर लगभग 30 किलोमीटर की गहराई पर स्थित था।
इस भूकंप से भी किसी तरह की जनहानि की खबर नहीं है, न ही सुनामी का खतरा जताया गया है, लेकिन लोग डरे हुए हैं क्योंकि सिर्फ पांच दिन पहले 3 अप्रैल को भी इंडोनेशिया में भूकंप आया था, जिसकी तीव्रता 5.9 थी।
भविष्य को लेकर चिंताएं बढ़ीं
इंडोनेशिया का भूगोल ही इसे लगातार खतरे में रखता है। यह देश प्रशांत महासागर के “रिंग ऑफ फायर” क्षेत्र में आता है, जो टेक्टोनिक प्लेट्स की गतिविधियों के कारण भूकंप और ज्वालामुखी विस्फोटों के लिए कुख्यात है। यहां 127 सक्रिय ज्वालामुखी हैं, जिससे खतरा हमेशा बना रहता है।
हालांकि दोनों देशों में इस बार बड़े नुकसान से बचाव हो गया है, लेकिन भूकंपों की बढ़ती आवृत्ति चिंता बढ़ाने वाली है। वैज्ञानिक और प्रशासनिक एजेंसियां हालात पर नजर बनाए हुए हैं, लेकिन आम नागरिकों में डर और अनिश्चितता बनी हुई है।
प्रकृति का ये डर कब थमेगा, कोई नहीं जानता – लेकिन सतर्क रहना ही फिलहाल सबसे बड़ा उपाय है।