मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: दरगाह की जमीन वक्फ की नहीं
Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश में वक्फ बोर्ड को एक बड़ा झटका लगा है, जब जबलपुर हाई कोर्ट ने उस पर बड़ा फैसला सुनाया। यह मामला रीवा जिले की एक निजी जमीन से जुड़ा है, जिस पर वक्फ बोर्ड ने अपना मालिकाना हक जताया था। कोर्ट ने इस मामले में नोटिस जारी करते हुए वक्फ बोर्ड के दावा को खारिज कर दिया है, जिसके बाद बोर्ड को यह बड़ा झटका लगा है।
निजी जमीन पर वक्फ बोर्ड का दावा
वक्फ बोर्ड ने वर्षों पहले रीवा जिले के अमहिया में स्थित एक निजी जमीन को अपनी संपत्ति घोषित कर दिया था। बोर्ड ने महज रजिस्टर में जमीन की एंट्री कर इसे वक्फ की प्रॉपर्टी मान लिया था। हालांकि, इस मामले में याचिकाकर्ता हाजी मोहम्मद अली ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर बोर्ड के इस कदम को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता ने कोर्ट में दलील दी कि केवल रजिस्टर में नाम दर्ज करने से कोई संपत्ति वक्फ बोर्ड की प्रॉपर्टी नहीं बन सकती।
याचिकाकर्ता का इतिहास
याचिकाकर्ता हाजी मोहम्मद अली का कहना है कि उनकी दादी के पूर्वजों ने करीब 100 साल पहले इस निजी भूमि पर एक दरगाह बनाई थी, जिसे हाजी सैयद जहूर अली शाह के नाम से जाना जाता है। याचिकाकर्ता ने कहा कि ना तो उनके पूर्वजों ने और न ही उनके परिवार ने कभी इस जमीन को वक्फ बोर्ड को दान दिया था। इस जमीन पर वक्फ बोर्ड ने बिना किसी अनुमति और बिना परिवार से पूछे ही अपनी संपत्ति का दावा किया था।
कोर्ट का निर्णय और रोक
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस विशाल धगट ने वक्फ बोर्ड की कार्रवाई पर रोक लगाते हुए यह आदेश दिया कि मामले की यथास्थिति बनाए रखी जाए। कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि बिना किसी दान या समर्पण की प्रक्रिया के, वक्फ बोर्ड इस निजी जमीन पर दावा नहीं कर सकता। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि इस मामले में सुनवाई की प्रक्रिया जारी रखी जाए, ताकि सही निर्णय लिया जा सके।
पिछले साल का भी था बड़ा झटका
यह पहला मामला नहीं है, जब वक्फ बोर्ड को हाई कोर्ट से ऐसा झटका लगा हो। पिछले साल अगस्त में भी कोर्ट ने वक्फ बोर्ड के खिलाफ एक महत्वपूर्ण आदेश दिया था। तब अदालत ने बुरहानपुर की तीन ऐतिहासिक इमारतों को वक्फ बोर्ड की प्रॉपर्टी मानने से इंकार कर दिया था। अदालत ने सवाल उठाया था कि मुग़ल बादशाह शाहजहां की बहू का मकबरा और अन्य प्राचीन इमारतें कैसे वक्फ बोर्ड की संपत्ति हो सकती हैं, जबकि वे प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम 1904 के तहत आते हैं।
वक्फ बोर्ड की निरंतर विवादित स्थिति
इन फैसलों से साफ है कि वक्फ बोर्ड को अपनी संपत्ति के दावे के संबंध में कड़ी कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। कोर्ट की यह कार्रवाई दर्शाती है कि भूमि और संपत्ति के मामलों में बोर्ड को कानूनी प्रक्रिया और समुचित अनुमति के बिना कोई दावा नहीं किया जा सकता। वक्फ बोर्ड को अब अपनी प्रक्रियाओं को और अधिक पारदर्शी और कानूनी तरीके से आगे बढ़ाना होगा।