वक्फ संशोधन कानून पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की तारीख तय
वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को लेकर देश में कानूनी और सामाजिक बहस तेज हो गई है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा 5 अप्रैल को इस अधिनियम को मंजूरी दिए जाने के बाद अब इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। कोर्ट ने इस मुद्दे पर सुनवाई के लिए 16 अप्रैल की तारीख तय कर दी है।
करीब 10 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल
इस कानून के खिलाफ अब तक लगभग 10 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की जा चुकी हैं। इन याचिकाओं में वक्फ संशोधन अधिनियम की संवैधानिक वैधता को लेकर सवाल उठाए गए हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह अधिनियम धार्मिक और संपत्ति अधिकारों का उल्लंघन करता है और अल्पसंख्यक समुदायों के हितों पर असर डालता है।
चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में होगी सुनवाई
सुनवाई के लिए गठित बेंच में चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन शामिल होंगे। यह बेंच 16 अप्रैल को इन सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करेगी।
कपिल सिब्बल ने की याचिकाओं को प्राथमिकता देने की मांग
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अदालत से आग्रह किया कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद और अन्य संगठनों की ओर से दाखिल याचिकाएं गंभीर और अहम मुद्दों से जुड़ी हैं, जिन्हें प्राथमिकता दी जानी चाहिए। कोर्ट ने इस पर सहमति जताई और याचिकाओं को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का फैसला किया।
राजनेताओं और संगठनों की याचिकाएं शामिल
इस मामले में कई प्रमुख नेताओं और संगठनों ने याचिकाएं दाखिल की हैं। इनमें डीएमके, कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी और मोहम्मद जावेद, एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी, आरजेडी सांसद मनोज झा और फैयाज अहमद, आम आदमी पार्टी विधायक अमानतुल्ला खान और जेडीयू के मुस्लिम नेता हाजी मोहम्मद परवेज सिद्दिकी शामिल हैं। परवेज सिद्दिकी राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आरक्षण मोर्चा के अध्यक्ष भी हैं।
केंद्र सरकार ने दाखिल की कैविएट
केंद्र सरकार ने भी मामले को गंभीरता से लेते हुए सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल की है। इसका उद्देश्य यह है कि याचिकाओं पर कोई भी आदेश पारित करने से पहले सरकार का पक्ष सुना जाए। सरकार का कहना है कि अधिनियम को विधिवत प्रक्रिया के तहत पारित किया गया है, और किसी भी निर्णय से पहले उनकी दलीलों पर विचार होना चाहिए।
16 अप्रैल की सुनवाई पर टिकी हैं निगाहें
अब देशभर की निगाहें 16 अप्रैल की सुनवाई पर टिकी हैं। यह देखा जाना बाकी है कि अदालत इस अधिनियम की वैधता को लेकर क्या रुख अपनाती है। धार्मिक संगठनों, राजनीतिक दलों और आम नागरिकों में इसको लेकर उत्सुकता और चिंता दोनों है।