बहराइच में हाल ही में दुर्गा पूजा विसर्जन के दौरान भड़की सांप्रदायिक हिंसा ने फिर से शासन और प्रशासन पर सवाल उठा दिए हैं। ऐसी हिंसाओं के पीछे का साइकोलॉजी क्या होता है? आखिर कौन लोग होते हैं जो ऐसी घटनाओं में हिस्सा लेते हैं और क्यों भीड़ का कोई खुद का विचार नहीं होता, वो बस दूसरों के इशारे पर चलती है?
13 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के बहराइच के महाराजगंज कस्बे में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान हुई हिंसा में एक युवक की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इसके बाद हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच तनाव बढ़ गया, और दंगे भड़क उठे। पुलिस ने इस मामले में 12 एफआईआर दर्ज की और करीब 50 लोगों को गिरफ्तार किया है। साथ ही 50 से अधिक घरों में तोड़फोड़ की गई। इस हिंसा ने फिर से एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया कि आखिर ये दंगे होते क्यों हैं और इनका मनोविज्ञान क्या है?
भीड़ का मनोविज्ञान: क्यों होती है हिंसा?
दंगे या सांप्रदायिक हिंसा की बात करें तो भीड़ का मनोविज्ञान बहुत अहम भूमिका निभाता है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, भीड़ के पास खुद की कोई सोच या आंखें नहीं होती हैं, वो बस अपने नेता या अगुवाई करने वाले व्यक्ति के अनुसार काम करती है।
गुस्ताव ले बॉन, गेब्रियल टार्डे, और सिगमंड फ्रायड जैसे मनोवैज्ञानिकों ने भीड़ के इस व्यवहार पर विस्तार से अध्ययन किया है। उनकी राय में, भीड़ में पहले थोड़ी एकता होती है, लेकिन धीरे-धीरे कुछ लोग इसमें उग्रता को बढ़ावा देने लगते हैं, और बाकी लोग उनके साथ चल पड़ते हैं। यही वजह है कि भीड़ बिना सोचे-समझे, उग्र हो जाती है और हिंसक कार्यों को अंजाम देती है।
सोशल आइडेंटिटी थ्योरी: पहचान और वर्चस्व की लड़ाई
सोशल आइडेंटिटी थ्योरी में यह बताया गया है कि भीड़ में कई सामाजिक समूह होते हैं, जिनकी नैतिक और व्यावहारिक मान्यताएं अलग होती हैं। वक्त के साथ-साथ उनके मकसद भी बदल जाते हैं, और वे अपने समाज में पहचान और वर्चस्व बनाने के लिए हिंसक कार्यों में शामिल हो जाते हैं।
भारत में दंगों का इतिहास
दंगों का इतिहास पुराना है। 1946 में हुए “ग्रेट कलकत्ता किलिंग” इसका बड़ा उदाहरण है, जिसमें 10,000 से ज्यादा लोग मारे गए थे। मोहम्मद अली जिन्ना द्वारा बुलाए गए ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ के बाद ये हिंसा भड़क उठी थी। यह दंगे विभाजन से पहले के सबसे कुख्यात नरसंहारों में से एक थे।
इतिहास में देखा गया है कि फैरोहों के राज में मिस्र में भी ऐसे सांप्रदायिक दंगे भड़के थे। इसके बाद मेसोपोटामिया से लेकर रोमन साम्राज्य तक, हर सभ्यता में दंगों का इतिहास देखा गया है। धर्मयुद्धों के दौरान भी ईसाई और मुस्लिम धर्म के बीच हिंसक घटनाओं का एक लंबा दौर रहा है।