दही, जिसे दही के नाम से भी जाना जाता है, एक व्यापक रूप से खाया जाने वाला डेयरी उत्पाद है जो एक शाश्वत पाचन समाधान के रूप में कार्य करता है। कई भारतीय घरों में, यह न केवल भोजन के साथ एक आनंददायक संगत है, बल्कि आयुर्वेदिक परंपराओं में गहराई से निहित है।
आयुर्वेद के अनुसार दही के फायदे
इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च के अनुसार, दही जैवउपलब्ध विटामिन, खनिज और फोलेट का एक अच्छा स्रोत है, जिसमें दूध की तुलना में लैक्टोज और गैलेक्टोज की मात्रा कम होती है। दही का सेवन बुजुर्गों में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को बढ़ा सकता है।
आयुर्वेद के अनुसार, दही के प्राकृतिक प्रोबायोटिक्स पेट के स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं, पाचन में सहायता करते हैं और कब्ज को रोकते हैं, अष्टांग हृदयम, एक मूलभूत आयुर्वेदिक पाठ, सुझाव देता है कि दही ताकत बढ़ाता है और मांसपेशियों के ऊतकों के निर्माण को बढ़ावा देता है।
आयुर्वेदिक तरीके से दही का सेवन कैसे करें
दही का सेवन करते समय कुछ आयुर्वेदिक तरीकों का पालन करने की सलाह दी जाती है। इसमे शामिल है:
दोष पर विचार: दही अपने खट्टे और खट्टे गुणों के कारण मुख्य रूप से वात दोष के लिए फायदेमंद है। हालाँकि, इसकी ठंडी प्रकृति कफ को बढ़ा सकती है, और इसकी खटास पित्त को परेशान कर सकती है। इस प्रकार, किसी की प्रकृति (संविधान) को समझना महत्वपूर्ण है।
दिन का समय: आयुर्वेद का क्लासिक पाठ, चरक संहिता, दिन के समय दही का सेवन करने की सलाह देता है, खासकर दोपहर के भोजन के समय जब पाचन अग्नि मजबूत होती है।
मौसमी सेवन: मानसून और सर्दियों के मौसम में दही से परहेज करना सबसे अच्छा है, खासकर रात में, क्योंकि इससे बलगम बन सकता है। हालाँकि, अपने ठंडे गुणों के कारण यह गर्मियों के दौरान फायदेमंद होता है।
दही की शक्ति को बढ़ाना: एक चुटकी काली मिर्च या जीरा पाउडर मिलाने से दही के कफ-बढ़ने वाले गुणों को कम किया जा सकता है। यह संयोजन पाचन में सहायता करता है और बलगम संचय को रोकता है।
असंगत खाद्य पदार्थों से बचें: आयुर्वेद खट्टे फल, दूध, या खरबूजे के साथ दही के एक साथ सेवन के खिलाफ चेतावनी देता है। इस तरह के संयोजन से पाचन संबंधी समस्याएं और विष निर्माण हो सकता है।
यहां कुछ कारण बताए गए हैं कि क्यों आयुर्वेद बरसात के मौसम में दही से परहेज करने की सलाह देता है:
पाचन संबंधी समस्याएं: दही ठंडा और भारी होता है, जो पाचन अग्नि को कमजोर कर सकता है और सूजन, गैस और अपच का कारण बन सकता है।
बलगम उत्पादन: दही बलगम उत्पादन को गति प्रदान कर सकता है, खासकर रात में।
मौसमी बीमारियाँ: मौसमी बदलाव से वात और पित्त दोष बढ़ सकते हैं, जिससे मौसमी बीमारियाँ हो सकती हैं।
दही के बजाय, आप बरसात के मौसम में छाछ का सेवन कर सकते हैं, जो बढ़े हुए कफ और वात के कारण अग्नि और स्थितियों में सुधार कर सकता है।
सुरक्षा टिप्स
दही के अधिक सेवन से अपच, त्वचा का फटना और एनीमिया जैसी समस्याएं हो सकती हैं। एनीमिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें आपका रक्त बहुत कम मात्रा में लाल रक्त कोशिकाओं (आरबीसी) का उत्पादन करता है। इसलिए, इसका सेवन सीमित मात्रा में करना जरूरी है।
मौसमी सेवन: मानसून और सर्दियों के मौसम में दही से परहेज करना सबसे अच्छा है, खासकर रात में, क्योंकि इससे बलगम बन सकता है। हालाँकि, अपने ठंडे गुणों के कारण यह गर्मियों के दौरान फायदेमंद होता है।
आयुर्वेद के अनुसार, बारिश के मौसम में खासकर रात के समय दही खाने से बचना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं कि इस दौरान दही खाने से एक साथ तीन दोष (वात, पित्त और कफ) प्रभावित हो सकते हैं, जिससे मौसमी बीमारियां हो सकती हैं। दूसरों का मानना है कि दही पाचन संबंधी समस्याएं, बलगम उत्पादन, सुस्ती, सूजन और जोड़ों के दर्द का कारण बन सकता है।
संक्षेप में, दही लाभों का खजाना है, लेकिन सभी आयुर्वेदिक सिफारिशों की तरह, इसका सेवन किसी के दोष, मौसम और दैनिक दिनचर्या को ध्यान में रखते हुए व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुरूप होना चाहिए।