इस विदाई से पूर्व जिले की कागज़ नगरी ओपीएम में विराजी माता रानी के दरबार में एक नन्ही भक्त मात्था टेकने पहुंची ।जहां मात्र 6 वर्ष की अरुण्या सिंह ने माँ के दरबार में योग नृत्य की ऐसी प्रस्तुति दी कि इसे देख वहाँ मौजूद भक्तो की आँखे फटी की फटी रह गयी । नन्ही बच्ची ने माँ के सामने इस श्रद्धा के साथ योग नृत्य किया कि मानो वह माता रानी के विदाई के अंतिम बेला पर फूट फूटकर रो रही हो । विदित हो कि शारदेय नवरात्रि में माता रानी की विदाई एक भावुक और पवित्र क्षण होता है, जिसमें भक्तगण अपनी श्रद्धा और आस्था के साथ माता को विदा करते हैं। यह पर्व केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर पहलू में सकारात्मक ऊर्जा, साहस और शक्ति का संदेश देता है।
भावुकता और आस्था का मिलन
विदाई का यह क्षण भक्तों के लिए अत्यंत भावुक होता है, क्योंकि माता रानी के जाने के साथ ही नवरात्रि का उत्सव भी समाप्त होता है। भक्तों की आंखों में आंसू होते हैं, लेकिन साथ ही उनके दिलों में यह विश्वास होता है कि माता फिर से अगले वर्ष आएंगी और अपने भक्तों की हर प्रार्थना का उत्तर देंगी। इसी विश्वास और आस्था के साथ भक्तजन माता रानी को विदा करते हैं।
भक्ति और भावना का संगम
नवरात्रि के अंतिम दिन, जिसे दशहरा या विजयादशमी के नाम से जाना जाता है, माता रानी की मूर्ति को पूजा-अर्चना के बाद विदा किया जाता है। इस समय को भक्तजन भावनाओं से भरा हुआ मानते हैं क्योंकि यह केवल माता रानी की विदाई ही नहीं होती, बल्कि यह भी विश्वास होता है कि वे अपने भक्तों के जीवन से सारे दुःख-दर्द हर लेती हैं और उनके जीवन में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
विदाई की प्रक्रिया और मान्यता
विदाई के समय माता रानी की प्रतिमा को नदी, तालाब, या समुद्र में विसर्जित किया जाता है। विसर्जन का यह कार्य एक विशेष रीति-रिवाज के साथ किया जाता है, जिसमें भक्तगण देवी की स्तुति करते हुए, जयकारे लगाते हुए, और आरती गाते हुए प्रतिमा को विदा करते हैं। विसर्जन के दौरान, भक्तों की यह मान्यता होती है कि माता रानी जल के माध्यम से अपनी सवारी वापस स्वर्गलोक की ओर प्रस्थान करती हैं, और अगले वर्ष फिर से अपने भक्तों के बीच लौटकर आती हैं।
विदाई में छिपा संदेश
माता रानी की विदाई हमें यह सिखाती है कि जीवन में परिवर्तन स्थायी हैं। हर शुभारंभ का अंत भी होता है, लेकिन यह अंत केवल एक नए आरंभ की तैयारी है। माता की विदाई के साथ ही हम अपने जीवन में पुनः नए लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रेरित होते हैं। विदाई का यह क्षण हमें यह भी याद दिलाता है कि भले ही माता की मूर्ति हमारे बीच से चली जाती है, लेकिन उनकी आस्था, उनके आशीर्वाद और उनकी भक्ति सदैव हमारे दिलों में बसती है।