हाल ही में उत्तर प्रदेश में पुलिस मुठभेड़ को लेकर सियासी दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला तेज हो गया है। इस मुद्दे पर पहले भी प्रदेश में राजनीति होती रही है। वर्ष 1980 में जब विश्वनाथ प्रताप सिंह यूपी के मुख्यमंत्री थे, तब भी मुठभेड़ पर काफी चर्चाएं हुई थीं।
वीपी सिंह के दो साल 39 दिन के कार्यकाल में उत्तर प्रदेश में एक हजार से अधिक पुलिस मुठभेड़ हुईं। इस पर उस समय के लोकदल के नेता मुलायम सिंह यादव और मोहन सिंह ने सरकार पर फर्जी मुठभेड़ कराने का आरोप लगाया था।
1975 से 1985 के दौरान उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में डाकुओं का खौफ व्याप्त था। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 9 जून 1980 को मुख्यमंत्री बनने के बाद तुरंत ही डकैतों के खिलाफ एक अभियान की शुरुआत की। इसके परिणामस्वरूप, लगभग हर दूसरे दिन पुलिस मुठभेड़ों की खबरें प्रमुख सुर्खियों में छाने लगीं।
बेहमई नरसंहार के बाद एनकाउंटर में आई वृद्धि
वीपी सिंह के मुख्यमंत्री बनने के एक साल के भीतर, 14 फरवरी 1981 को कानपुर के बेहमई में डकैत फूलन देवी ने 20 ठाकुरों की हत्या कर दी।एक खबर के अनुसार, इस नरसंहार में फूलन देवी के साथ मुस्तकीम, राम प्रकाश और लल्लू सहित 25 डकैत शामिल थे। इस घटना के बाद, वीपी सिंह ने सभी डकैतों को खत्म करने का आदेश दिया, जिससे उत्तर प्रदेश में मुठभेड़ों की संख्या अचानक बढ़ गई।
डकैतों के खिलाफ अभियान जारी रहेगा: वीपी सिंह
26 मई 1981 को प्रकाशित एक खबर के अनुसार, वीपी सिंह ने स्पष्ट किया कि सरकार डकैतों का आत्मसमर्पण कराने का कोई प्रयास नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि उनके खिलाफ पूरी ताकत के साथ अभियान जारी रहेगा। बाद में, फूलन देवी ने मध्य प्रदेश में आत्मसमर्पण किया।