छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के पास मिला भारत का सबसे बड़ा ढोल, जानें इसकी खासियत
छत्तीसगढ़ की लोक कला और संस्कृति में वाद्य यंत्रों का विशेष स्थान है, और यहां के मुरिया आदिवासियों के पास एक ऐसा ढोल है जो देश में सबसे बड़ा माना जाता है। इसे भोगम ढोल कहा जाता है, जो अपनी ताकतवर आवाज और मंत्रमुग्ध कर देने वाली ताल के लिए प्रसिद्ध है। इस ढोल का वजन भारी और आकार बेहद बड़ा है, जो इसे अन्य ढोलों से अलग बनाता है।
भोगम ढोल की खोज
रिखी छतरी, जो छत्तीसगढ़ी लोक कला और वाद्य यंत्रों के मशहूर संग्राहक हैं, हाल ही में बस्तर के बीजापुर जिले के मुसालूर गांव गए थे। वहां देवमड़ई उत्सव के दौरान उन्हें मुरिया आदिवासियों के पास यह भोगम ढोल मिला। ढोल को देखकर रिखी छतरी भी हैरान रह गए क्योंकि इसकी विशिष्टता और आकार भारत में बहुत ही कम देखने को मिलता है।
भोगम ढोल कैसे बनता है?
यह ढोल खास तरह की लकड़ी से बनाया जाता है, जिसमें सरई और बीजा की लकड़ी मुख्य होती है। ढोल की लंबाई लगभग तीन फीट और व्यास दो फीट के करीब है, जो इसे बहुत बड़ा बनाता है। इसके ऊपर भैंस या बैल के चमड़े को चढ़ाया जाता है, जो ध्वनि को और प्रभावशाली बनाता है। यह ढोल करीब एक क्विंटल यानी सौ किलोग्राम से भी ज्यादा भारी होता है। इसे बजाने के लिए दो लोग इसे अपने कंधों पर कांवर की तरह उठाते हैं।
भोगम ढोल की सांस्कृतिक महत्ता
मुरिया आदिवासी समुदाय इस ढोल का उपयोग पारंपरिक कार्यक्रमों में करते हैं। जैसे जात्रा, शादी, जन्मोत्सव और अन्य मांगलिक अनुष्ठानों में इसका प्रयोग अनिवार्य होता है। इस ढोल को बजाने से पहले पूजा-अर्चना की जाती है और देवताओं की स्तुति के गीत गाए जाते हैं। इसकी गूंज को मान्यता है कि यह किसी भी समारोह को पवित्र और मंत्रमुग्ध कर देने वाली ऊर्जा प्रदान करती है।
देश का सबसे बड़ा भोगम ढोल
रिखी छतरी के अनुसार, यह ढोल न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे भारत का सबसे बड़ा भोगम ढोल है। वे लोक कला और सांस्कृतिक विरासत को संजोने के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध हैं और ऐसे अनमोल खजानों को खोजने और संरक्षित करने में जुटे रहते हैं। इस ढोल की खोज छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर को और भी समृद्ध करती है और यह दिखाती है कि देश के आदिवासी समुदायों की कला कितनी अद्भुत और खास है।
इस भोगम ढोल की ताल में छिपा है छत्तीसगढ़ की संस्कृति की गूंज, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए अनमोल विरासत साबित होगी।