महाभारत काल में पांडवों ने अपने अज्ञातवास के कुछ समय को शहडोल जिले के बुढ़ार तहसील स्थित लखवरिया गांव में बिताया था। शहडोल के बुढ़ार तहसील में एक स्थान अरझुला है जहां के बारे में कहा जाता है कि महाभारत काल के अज्ञातवास के दौरान पांडव अरझुला आए थे और एक लाख गुफाओं का निर्माण किया था। यह क्षेत्र मैकल पर्वत श्रृंखला की तराई में स्थित है इसके बाद इस स्थल को लखवरिया गुफाएँ के नाम से जाना जाने लगा। जनश्रुतियों और इतिहासकारों के अनुसार, अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने शहडोल जिले के विभिन्न स्थानों पर भ्रमण किया और अरझुला क्षेत्र के घने जंगलों में एक गुफा बनाई जिसमें एक लाख कक्ष थे। इसी कारण से इसे लखवरिया गुफा नाम दिया गया।।
इन गुफाओं के बारे में कहा जाता है कि जब पांडव अज्ञातवास में थे, तो उन्होंने ही इन ऐतिहासिक गुफाओं का निर्माण किया और कुछ समय यहाँ भी बिताया। पुरातत्वविद के अनुसार, लखवरिया की गुफाएँ न केवल ऐतिहासिक हैं, वरन महाभारत के अज्ञातवास से भी इनका संबंध जोड़ा जाता है, कि पांडवों ने राजा विराट के क्षेत्र में अज्ञातवास के दौरान शरण ली थी और दूसरी से छठवीं सदी के बीच लखवरिया में स्थित गुफाओं का निर्माण कठोर लाल रेत और मजबूत चट्टानों से एक लाख गुफाओं का निर्माण किया था अब केवल कुछ ही कमरे सुरक्षित हैं, जबकि अधिकांश के प्रवेश द्वार मिट्टी से ढक गए हैं
पांडव की गुफाओं के नाम से प्रसिद्ध
इतिहासकारों का मानना है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव राजा विराट की नगरी सोहागपुर में भी कुछ समय तक रहे थे, जो लखवरिया से थोड़ी ही दूरी पर स्थित है। किंवदंती के अनुसार, यहाँ पांडवों ने अपने बाण से एक कुंड बनाया, जिसे “बाणगंगा” के नाम से जाना जाता है। वर्तमान में इस कुंड में मकर संक्रांति पर विशाल मेला लगता है। मान्यता है कि इस कुंड का पानी सभी बीमारियों को ठीक कर देता है।
लखवरिया के दैवीय स्थल
लखवरिया की गुफाओं में कई पवित्र स्थल भी हैं। इनमें एक प्रमुख स्थल अर्धनारेश्वर शिवलिंग है, जो गुफा के अंदर खुदाई के दौरान प्राप्त हुआ था। यहाँ रामलला का दर्शन भी किया जा सकता है, क्योंकि एक रामलला मंदिर भी है जहाँ भगवान राम और सीता विराजमान हैं। गुफाओं में सीता माता की रसोई है, मान्यता है कि भगवान राम अपने वनवास के दौरान यहाँ कुछ समय के लिए ठहरे थे। शनि मंदिर, राधा-कृष्ण मंदिर समेत कई अन्य धार्मिक स्थल भी देखे जा सकते हैं।
लखवरिया का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है और यह शहडोल जिले के बुढ़ार तहसील में स्थित है। यहाँ की गुफाओं और स्थल पर इतिहासकारों और पुरातत्वविदों द्वारा काफी अध्ययन और शोध किया गया है।
लखवरिया का ऐतिहासिक संदर्भ
- महाभारत काल से जुड़ी मान्यता:
- पांडवों का अज्ञातवास: ऐतिहासिक मान्यता के अनुसार, महाभारत के अज्ञातवास के दौरान पांडव यहाँ आए थे। इस दौरान उन्होंने विशाल संख्या में गुफाओं का निर्माण किया। यह मान्यता है कि पांडवों ने लखवरिया में एक लाख गुफाओं का निर्माण किया था, जिससे इस स्थल का नाम “लखवरिया” पड़ा।
- पुरातात्विक साक्ष्य:
- गुफाओं की संरचना: लखवरिया की गुफाएँ कठोर लाल रेत और मजबूत चट्टानों से निर्मित हैं। इन गुफाओं में प्राचीन काल की शिल्पकला और चित्रकला के अद्भुत उदाहरण देखने को मिलते हैं। हालांकि, आजकल इनमें से अधिकांश गुफाएँ मिट्टी से ढकी हुई हैं और केवल कुछ ही गुफाएँ संरक्षित हैं।
- वास्तुकला और शिल्प:
- चित्रकला और मूर्तिकला: गुफाओं की दीवारों पर उकेरे गए चित्र और मूर्तियाँ प्राचीन भारतीय कला और संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये चित्र धार्मिक दृश्यों और प्राचीन भारतीय जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं।
- स्थानीय किंवदंतियाँ:
- किंवदंतियाँ और परंपराएँ: स्थानीय लोगों के बीच लखवरिया गुफाओं के बारे में कई किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। इनमें से एक प्रमुख किंवदंती यह है कि पांडवों ने यहाँ एक बाण से एक कुंड बनाया था, जिसे बाणगंगा कहा जाता है। वर्तमान में, मकर संक्रांति पर इस कुंड में बड़ा मेला लगता है और यहाँ के पानी को औषधीय मान्यता प्राप्त है।
- वर्तमान स्थिति और पर्यटन:
- संरक्षण और अध्ययन: आज, लखवरिया गुफाएँ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल हैं। पुरातात्विक विभाग और स्थानीय प्रशासन इन गुफाओं के संरक्षण और अध्ययन के लिए निरंतर प्रयासरत हैं।
लखवरिया का इतिहास एक अद्वितीय सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को दर्शाता है, जो भारतीय प्राचीन काल की कला, संस्कृति और धर्म की गहराई को उजागर करता है।