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मदरसों की फंडिंग बंद करने की सिफारिश: NCPCR का राज्यों को पत्र…

राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (NCPCR) ने सभी राज्यों को पत्र लिखकर मदरसों को दी जाने वाली वित्तीय सहायता बंद करने की सिफारिश की है। इस कदम का उद्देश्य बच्चों के संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा करना और शिक्षा के अधिकार (RTE) के प्रावधानों का पालन सुनिश्चित करना है।

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Last updated: October 12, 2024 12:45 PM
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Highlights
  • बच्चों के संवैधानिक अधिकारों और मदरसों की भूमिका पर आधारित
  • शिक्षा का अधिकार अधिनियम (Right to Education Act) 2009 के प्रावधानों का मदरसों में पूरी तरह से पालन नहीं किया जा रहा है

मदरसों को फंडिंग बंद करने का सुझाव: NCPCR का राज्यों को पत्र

राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (NCPCR) ने हाल ही में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के सचिवों और प्रशासकों को पत्र लिखकर एक अहम सिफारिश की है। इसमें कहा गया है कि मदरसों को दिया जाने वाला वित्तीय समर्थन (funding) बंद किया जाना चाहिए और साथ ही मदरसा बोर्ड को भी भंग (dissolve) किया जाए। यह कदम बच्चों के संवैधानिक अधिकारों और मदरसों की भूमिका पर आधारित रिपोर्ट के आधार पर लिया गया है।

रिपोर्ट में क्या है?

NCPCR द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट में कुल 11 अध्याय हैं, जिनमें मदरसों के इतिहास से लेकर बच्चों के शैक्षिक अधिकारों के उल्लंघन में उनकी भूमिका तक की जानकारी दी गई है। रिपोर्ट का नाम है “बच्चों के संवैधानिक अधिकार बनाम मदरसा,” जिसमें स्पष्ट रूप से बताया गया है कि मदरसों में शिक्षा के अधिकार (Right to Education, RTE) अधिनियम 2009 का पालन नहीं हो रहा है।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 का उल्लंघन

NCPCR के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने पत्र में बताया कि RTE अधिनियम 2009 इस सोच पर आधारित है कि समान शिक्षा ही समानता, सामाजिक न्याय और लोकतंत्र जैसे मूल्यों को स्थापित कर सकती है। बच्चों के मौलिक अधिकारों और अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों के बीच एक संतुलन बनाने की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करना राज्यों की जिम्मेदारी है कि सभी बच्चों को शिक्षा का अधिकार मिले, चाहे वे किसी भी पृष्ठभूमि से हों।

मदरसा बोर्डों को बंद करने की सिफारिश

NCPCR का मानना है कि सिर्फ मदरसा बोर्ड का गठन कर देना या यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (UDISE) कोड ले लेना यह साबित नहीं करता कि ये मदरसे RTE एक्ट के प्रावधानों का पालन कर रहे हैं। इसलिए, आयोग ने सभी राज्यों से अनुरोध किया है कि मदरसों और मदरसा बोर्डों को मिलने वाली सभी वित्तीय सहायता तुरंत बंद कर दी जाए।

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के आधार पर सिफारिश

आयोग ने यह सिफारिश सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय के संदर्भ में की है, जिसमें बच्चों के शैक्षिक अधिकारों को प्राथमिकता दी गई है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मदरसों में पढ़ने वाले सभी गैर-मुस्लिम बच्चों को वहां से निकालकर सामान्य स्कूलों में दाखिला दिलाया जाए ताकि उन्हें RTE अधिनियम 2009 के तहत बुनियादी शिक्षा प्राप्त हो सके।

मदरसों का भविष्य

इस पत्र और रिपोर्ट के बाद यह सवाल उठता है कि अगर राज्यों ने इस सिफारिश को माना, तो मदरसों का भविष्य क्या होगा? क्या शिक्षा प्रणाली में कोई बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा? मदरसों के बच्चों को समान शिक्षा के दायरे में लाने की यह पहल उनके विकास में कितना योगदान देगी, यह देखना अभी बाकी है।

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