हलषष्ठी, जिसे हलछठ, हरछठ या ललई छठ भी कहा जाता है, एक प्रमुख व्रत और त्यौहार है, जिसे विशेष रूप से उत्तर भारत के ग्रामीण इलाकों में महिलाएँ मनाती हैं। यह त्यौहार भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। यह विशेष रूप से मातृत्व, संतान की दीर्घायु, और किसानों के लिए अन्न उपजाने वाले भगवान बलराम से जुड़ा है, जिनके हाथ में हल होता है।
हलषष्ठी की कथा:
हलषष्ठी व्रत से जुड़ी कथा भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी से संबंधित है। बलराम जी को हलधर भी कहा जाता है क्योंकि उनके हाथ में हल होता है, और वे कृषि के संरक्षक माने जाते हैं। इस दिन महिलाएँ विशेष रूप से अपने पुत्रों की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य के लिए व्रत करती हैं। हल से जुड़ी वस्तुओं और अनाज का विशेष महत्व होता है।
कहानी के अनुसार, एक बार एक गाँव में एक महिला ने हलषष्ठी के दिन अपने बच्चे के जन्म के लिए भगवान से प्रार्थना की। उसकी भक्ति और समर्पण देखकर भगवान बलराम ने उसे आशीर्वाद दिया और उसके घर में संतान का जन्म हुआ। इस व्रत का उद्देश्य यही है कि महिलाएँ अपने बच्चों की सुरक्षा और समृद्धि के लिए भगवान बलराम से प्रार्थना करें।
बलराम जी की कहानी:
भगवान बलराम की कथा भारतीय पुराणों और महाकाव्यों में अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। वे भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई और विष्णु के अवतार माने जाते हैं। बलराम जी को विष्णु के शेषनाग का अवतार माना जाता है, जो श्रीकृष्ण के साथ जन्मे थे। उनका जीवन साहस, शक्ति, और कर्तव्य के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
बलराम जी का जन्म द्वापर युग में हुआ था। जब कंस को यह ज्ञात हुआ कि उसकी बहन देवकी का आठवां पुत्र उसका संहार करेगा, तो उसने देवकी और वसुदेव को कारागार में बंद कर दिया और उनके सभी संतानों की हत्या कर दी। बलराम जी का जन्म देवकी के सातवें गर्भ से हुआ था, लेकिन भगवान विष्णु की माया से यह गर्भ रोहिणी (वसुदेव जी की दूसरी पत्नी) के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया गया। इस प्रकार, बलराम का जन्म रोहिणी के गर्भ से हुआ और वे रोहिणीनंदन कहलाए।
बलराम जी के प्रमुख अस्त्र हल (हलधर) और मूसल हैं। उन्होंने हल को अपने प्रमुख हथियार के रूप में चुना और इससे ही उन्होंने कई अद्भुत कार्य किए। वे कृषि और किसान के देवता माने जाते हैं। बलराम जी ने हमेशा कृषि और धरती की उर्वरता को महत्व दिया, जिससे किसान उनकी पूजा करते हैं।
उत्तरा और परीक्षित की कहानी:
महाभारत युद्ध के बाद, जब कौरवों का वंश समाप्त हो गया और पांडवों ने युद्ध जीत लिया, तो पांडवों का कुल उत्तराधिकारी कोई नहीं था। लेकिन अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा गर्भवती थी और उनके गर्भ में एक पुत्र (परीक्षित) पल रहा था। यही बच्चा पांडवों के वंश को आगे बढ़ाने वाला था।
युद्ध के बाद, अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए उत्तरा के गर्भ को नष्ट करने के उद्देश्य से ब्रह्मास्त्र छोड़ा। उत्तरा ने दौड़कर भगवान श्रीकृष्ण से मदद की गुहार लगाई। भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति से उत्तरा और उसके गर्भ की रक्षा की और ब्रह्मास्त्र के दुष्प्रभाव को समाप्त कर दिया। इसके परिणामस्वरूप, उत्तरा के गर्भ में पल रहा शिशु परीक्षित सुरक्षित बच गया।
हलषष्ठी व्रत का महत्व:
हलषष्ठी व्रत में महिलाएँ संतान की सुरक्षा और दीर्घायु की कामना करती हैं। यह व्रत बलराम जी की पूजा और कृषि जीवन से गहराई से जुड़ा है। इस दिन हल से जुड़ी वस्तुओं का त्याग किया जाता है और विशेष रूप से अन्न-जल का सेवन बहुत सीमित होता है। यह व्रत विशेष रूप से माताओं के लिए किया जाता है, ताकि उनकी संतान सुरक्षित रहे, ठीक उसी तरह जैसे उत्तरा ने अपने पुत्र परीक्षित की सुरक्षा के लिए भगवान से प्रार्थना की थी।
व्रत की परंपराएँ:
- इस दिन महिलाएँ हल द्वारा जोते गए खेत के अनाज का सेवन नहीं करतीं।
- व्रत में विशेष रूप से दूध, दही, और अन्य शुद्ध वस्त्र धारण कर पूजा की जाती है।
- बलराम जी की पूजा करके उनकी कृपा से संतान की सुरक्षा की कामना की जाती है।
इस प्रकार, अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा और उनके पुत्र परीक्षित की कथा हलषष्ठी व्रत के साथ गहराई से जुड़ी हुई है, जो संतान की रक्षा और उनकी दीर्घायु के लिए एक प्रतीकात्मक व्रत के रूप में मनाया जाता है।