भाजपा का दशहरे से पहले विजयोत्सव मनाने का सपना साकार नहीं हो सका, क्योंकि नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) और कांग्रेस गठबंधन ने दस साल बाद बहुमत हासिल कर सरकार बनाने का जनादेश पाया है। उमर अब्दुल्ला का फिर से मुख्यमंत्री बनना तय है। अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद हुए इस चुनाव के नतीजे अहम संदेश देते हैं, और इसके बाद कई सवाल उभर रहे हैं। छह साल से उपराज्यपाल शासन में जी रहे लोग स्थिर और निर्वाचित सरकार चाहते थे, जिसके लिए उन्होंने एनसी और कांग्रेस गठबंधन को स्पष्ट बहुमत दिया।
कश्मीर और जम्मू के मतदाताओं ने इस बार भी अलग-अलग मिजाज और मुद्दों पर वोट किया। कश्मीर में एनसी ने अनुच्छेद 370 बहाली के मुद्दे पर चुनाव लड़ा और उन्हें 35 सीटें मिलीं। वहीं, जम्मू के मतदाताओं ने भाजपा, एनसी, कांग्रेस और निर्दलीयों को समर्थन दिया, जिससे भाजपा को 29 सीटें मिलीं। हालांकि, भाजपा को जम्मू से 35 सीटों की उम्मीद थी, लेकिन वे उतनी सीटें नहीं हासिल कर सकी। कश्मीर घाटी में भाजपा को कोई समर्थन नहीं मिला, जहां उसके सभी 18 प्रत्याशी हार गए। पीडीपी भी तीन सीटों पर सिमट गई, और इल्तिजा मुफ्ती भी हार गईं।
एनसी-कांग्रेस गठबंधन की सफलता की प्रमुख वजह उनके त्वरित और चतुर फैसले रहे। उन्होंने भाजपा को अंतिम समय तक इस बात का अंदाजा नहीं होने दिया कि वे एकसाथ चुनाव लड़ेंगे। चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के बाद गठबंधन का एलान किया गया, और कुछ सीटों पर फ्रेंडली फाइट के बावजूद इसे दोस्ती में दरार के रूप में सामने नहीं आने दिया गया। गठबंधन ने रणनीतिक रूप से घाटी में अनुच्छेद-370 और जम्मू में दरबार मूव को मुद्दा बनाया। घाटी के मतदाता अनुच्छेद-370 की बहाली चाहते थे, जबकि जम्मू के लोग दरबार मूव की पुनः शुरुआत की मांग कर रहे थे। एनसी ने 370 के मुद्दे को फोकस किया, जबकि कांग्रेस ने दरबार मूव को, जिससे उन्हें कश्मीर घाटी का पूरा समर्थन मिला और जम्मू से भी पर्याप्त सीटें जीतकर एक मजबूत सरकार की नींव रखी।
अब इस जीत के बाद कई अहम सवाल उठ रहे हैं। एनसी का मुख्य चुनावी वादा अनुच्छेद-370 की बहाली है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे पहले ही निरस्त कर दिया है, और देखना होगा कि एनसी इस वादे को कैसे पूरा करती है। पार्टी ने राज्य को स्वायत्तता देने का वादा भी किया है, जिसका प्रस्ताव 2000 में विधानसभा में पास हुआ था, लेकिन वाजपेयी सरकार ने इसे खारिज कर दिया था। इसके अलावा, एनसी ने राजनैतिक कैदियों की रिहाई का वादा किया है, जिसमें पत्थरबाजों को छोड़ने का आश्वासन भी शामिल है, और यह देखना होगा कि एलजी को दिए गए अधिकारों के बीच एनसी इस दिशा में कैसे बढ़ती है। मुफ्त बिजली, एलपीजी सिलेंडर और नकद भुगतान योजनाओं के वादे भी चुनौतीपूर्ण होंगे, खासकर केंद्र की मदद के बिना।
वहीं, भाजपा राज्य के दर्जे की बहाली और दरबार मूव जैसे अहम मुद्दों पर जनता को संतुष्ट नहीं कर पाई। लोगों ने सवाल उठाया कि यदि राज्य का दर्जा बहाल करना था, तो इसे खत्म क्यों किया गया, और चुनाव से पहले ही इसे बहाल क्यों नहीं किया गया? जम्मू की अर्थव्यवस्था पर दरबार मूव का बड़ा प्रभाव है, और इसकी बंदी से रोजगार के अवसर कम हुए हैं। हालांकि, जम्मू शहर में भाजपा को समर्थन मिला, लेकिन संभाग के अन्य हिस्सों में अपेक्षित समर्थन न मिलने के पीछे यह एक बड़ा कारण माना जा रहा है।
पीडीपी की स्थिति इस चुनाव में बसपा जैसी हो गई। महबूबा मुफ्ती की पार्टी, जो कभी सत्ता में थी, अब कश्मीर के मतदाताओं द्वारा खारिज कर दी गई है। भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने का फैसला उसे भारी पड़ा, और खुद को पीछे कर बेटी इल्तिजा को आगे बढ़ाने की योजना भी विफल हो गई, क्योंकि वह अपना पहला चुनाव हार गईं और किंगमेकर बनने का सपना अधूरा रह गया।