श्याम बेनेगल: समानांतर सिनेमा के पथप्रदर्शक का निधन, उम्र 90 वर्ष
समानांतर सिनेमा के अग्रदूत और भारतीय सिनेमा के ‘चलते फिरते’ इनसाइक्लोपीडिया के रूप में प्रसिद्ध श्याम बेनेगल अब हमारे बीच नहीं रहे। न्याय, महिलाओं और वंचितों के अधिकारों के पक्षधर रहे इस महान फिल्मकार को कई तरीकों से याद किया जाएगा। उनका योगदान केवल सिनेमा तक सीमित नहीं था; उन्होंने समाज और मानवीय मनोविज्ञान को गहराई से समझने वाले विषयों को अपनी फिल्मों में जगह दी।
बेनेगल की फिल्मों की सूची लंबी और प्रभावशाली है। “निशांत”, “मंडी”, “भूमिका”, “मंथन”, “जुबैदा”, “जुनून” और “कलयुग” जैसी फिल्मों ने सिनेमा की परिभाषा को बदल दिया। उनकी हर फिल्म ने समाज के किसी न किसी पहलू को छुआ और दर्शकों को गहराई तक प्रभावित किया।
श्याम बेनेगल का योगदान केवल फिल्मों तक सीमित नहीं था। उन्होंने टेलीविज़न की दुनिया में भी अपनी छाप छोड़ी। जवाहरलाल नेहरू की पुस्तक “डिस्कवरी ऑफ इंडिया” पर आधारित 53-एपिसोड की सीरीज़ “भारत एक खोज” ने भारतीय इतिहास को पुनः जीवंत किया। यह सीरीज़ भारतीय दर्शकों के लिए इतिहास को समझने का एक नया माध्यम बनी।
बेनेगल ने स्वतंत्रता संग्राम के संघर्षों को भी कैमरे के माध्यम से अमर किया। उन्होंने पंजाब के करतारपुर में स्थित ‘जंग-ए-आज़ादी संग्रहालय’ के लिए 90 मिनट की डॉक्यूमेंट्री “जंग-ए-आज़ादी” का निर्देशन किया। यह डॉक्यूमेंट्री स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष और बलिदानों की गाथा को दर्शाती है।
श्याम बेनेगल को समानांतर सिनेमा का आधारस्तंभ कहा जाता है। उन्होंने अपनी फिल्मों में केवल मनोरंजन नहीं बल्कि समाज को आइना दिखाने का कार्य किया। उनकी हर फिल्म में एक संदेश छिपा होता था, जो समाज के किसी न किसी हिस्से को जागरूक करता था।
अब, जब वे हमारे बीच नहीं हैं, उनका नाम सिनेमा के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा। उनकी फिल्मों और योगदान के माध्यम से वे हमेशा याद किए जाएंगे। भारतीय सिनेमा को नई दिशा देने वाले इस महान फिल्मकार का जाना सिनेमा जगत के लिए अपूरणीय क्षति है।