कैंसर इलाज में क्यों पिछड़ रहे हैं मरीज? जानिए चुनौतियाँ और समाधान
भारत में कैंसर एक गंभीर स्वास्थ्य संकट बनता जा रहा है। इलाज की दौड़ में कई मरीज पीछे छूट जाते हैं, जिसका कारण है इलाज की सीमित उपलब्धता, जागरूकता की कमी और कमजोर स्वास्थ्य सुविधाएँ। विशेषज्ञों की मानें तो इन कारणों पर अगर समय रहते ध्यान न दिया गया तो आने वाले वर्षों में स्थिति और बिगड़ सकती है।
2040 तक हर साल सामने आ सकते हैं 20 लाख नए केस
विशेषज्ञों के अनुसार 2040 तक हर साल भारत में लगभग 20 लाख नए कैंसर मरीज सामने आ सकते हैं और 10 लाख से अधिक लोगों की जान जा सकती है। इसके बावजूद आज भी कैंसर का इलाज हर किसी की पहुंच में नहीं है। इलाज की सुविधाएँ देश के बड़े शहरों तक सिमटी हुई हैं, जिससे दूरदराज और ग्रामीण इलाकों के मरीज समय पर इलाज नहीं करा पाते।
इलाज की सुविधाएँ कुछ शहरों तक सीमित
देश के केवल आठ बड़े शहरों में रेडिएशन थेरेपी की 38% सुविधाएँ उपलब्ध हैं, जबकि इन शहरों में सिर्फ 11% आबादी रहती है। इससे साफ है कि बाकी 89% आबादी, जो छोटे शहरों या गांवों में रहती है, उन्हें इलाज के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है या सफर करना पड़ता है, जिससे इलाज में देर होती है।
आर्थिक परेशानियाँ भी इलाज में बाधा
इलाज की राह में केवल दूरी ही नहीं, बल्कि आर्थिक बोझ भी एक बड़ी रुकावट है। बीमा की सुविधाओं का अभाव, इलाज की महंगी लागत और संसाधनों की कमी के कारण हजारों मरीज इलाज तक पहुंच ही नहीं पाते। इसका सीधा असर उनकी जान पर पड़ता है।
कैंसर से लड़ाई में सामूहिक प्रयास की जरूरत
विशेषज्ञ मानते हैं कि कैंसर से लड़ाई सिर्फ डॉक्टर या मरीज अकेले नहीं लड़ सकते, इसके लिए समाज, सरकार और स्वास्थ्य संस्थानों को मिलकर काम करना होगा। स्क्रीनिंग प्रोग्राम्स को बढ़ावा देना, बीमारी की शुरुआती पहचान पर जोर देना और ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल्स को एक समान रूप से लागू करना जरूरी है।
तकनीक और साझेदारी बना सकती है समाधान का रास्ता
डिजिटल हेल्थ तकनीकों, सार्वजनिक और निजी संस्थानों की साझेदारी और यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज जैसे कदम इलाज को हर व्यक्ति तक पहुंचाने में मदद कर सकते हैं। चाहे मरीज गांव में हो या शहर में, और चाहे उसके पास बीमा हो या न हो — हर किसी को समान इलाज मिलना चाहिए।
महिलाओं और पुरुषों में कौन से कैंसर आम?
आंकड़ों के अनुसार, महिलाओं में सबसे अधिक स्तन कैंसर और सर्वाइकल कैंसर पाए जाते हैं। हर साल स्तन कैंसर के लगभग 2 लाख नए केस दर्ज होते हैं। वहीं पुरुषों में सबसे आम कैंसर मुंह का और उसके बाद फेफड़ों का कैंसर है।
नीतिगत बदलाव से होगा स्थायी असर
केवल योजनाएं बनाना काफी नहीं, बल्कि नीतियों को जमीनी स्तर पर लागू करना, स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश बढ़ाना और यूनिवर्सल हेल्थकेयर को प्राथमिकता देना बेहद जरूरी है। यही रास्ता है जिससे कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से समय पर और सुलभ इलाज सुनिश्चित किया जा सकता है।