शहरी ढांचे पर संकट: स्थानीय निकाय चुनावों में देरी बनी बड़ी वजह
शहरों की चरमराती व्यवस्था
देश के अधिकांश शहर आज अव्यवस्था से जूझ रहे हैं। कहीं थोड़ी बारिश में ही जलभराव और बाढ़ जैसे हालात बन जाते हैं, तो कहीं स्वच्छता की कमी, प्रदूषण और आवारा पशुओं की समस्या आम हो गई है। कई जगहों पर लोग साफ पानी और सीवर की परेशानियों से जूझते रहते हैं। इन समस्याओं के समाधान की जिम्मेदारी स्थानीय निकायों और नगर निगमों की होती है।
चुनाव में देरी से बिगड़ा हाल
रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि देश के 17 राज्यों में 61 प्रतिशत शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव समय पर नहीं हो पाए। इसकी वजह से कई शहर निर्वाचित परिषदों के बजाय प्रशासकों के अधीन चल रहे हैं। जबकि जनता की समस्याओं को दूर करने और शहरों के विकास कार्यों की निगरानी के लिए चुने हुए प्रतिनिधियों का होना बेहद जरूरी है।
रिपोर्ट के बड़े खुलासे
गैरसरकारी संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट में सीएजी की परफॉर्मेंस ऑडिट रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया गया कि दिल्ली और गुरुग्राम में सात महीने और बेंगलुरु में 55 महीने तक चुनाव कराने में देरी हुई। कर्नाटक में तो औसतन 22 महीने की देरी दर्ज की गई। इसके अलावा, परिषद गठन और मेयर चुनाव में भी 11 महीने से ज्यादा समय लग गया।
देरी के कारण
रिपोर्ट के अनुसार चुनावों में देरी के कई कारण सामने आए हैं।
- कई राज्यों में परिसीमन और आरक्षण की प्रक्रिया समय पर पूरी नहीं होती।
- 34 राज्य चुनाव आयोगों में से केवल आठ के पास ही वार्ड परिसीमन और आरक्षण की शक्ति है।
- गुजरात, गोवा, हरियाणा, मध्य प्रदेश, ओडिशा, कर्नाटक और उत्तराखंड जैसे राज्यों में यह मुद्दा खासा विवादित रहा है।
- कुछ राज्यों ने चुनाव आयोग से परिसीमन की शक्ति वापस ले ली, जिससे और अड़चनें पैदा हुईं।
- कानूनी प्रक्रिया की जटिलता, कोर्ट केस और नियमों में संशोधन भी देरी का कारण बनते हैं।
कानूनी ढांचे की कमजोरियां
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि परिषद की पहली बैठक कब होगी, इसकी कोई कानूनी समयसीमा तय नहीं है। यही वजह है कि कार्यकाल की शुरुआत से ही देरी होती चली जाती है। इसके अलावा, कई राज्यों में ऐसे कानून बने हैं, जिनसे राज्य सरकारों को स्थानीय निकायों को भंग करने की असीमित शक्ति मिल जाती है।
सीएजी की सिफारिशें
देरी रोकने के लिए रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि समान मतदाता सूची तैयार की जाए, राज्य चुनाव आयोगों की स्वायत्तता बढ़ाई जाए और पारदर्शी रिपोर्टिंग तंत्र लागू किया जाए। इसके साथ ही, चुनाव के बाद परिषद की बैठक, मेयर और समिति सदस्यों के चुनाव की स्पष्ट टाइमलाइन भी जरूरी बताई गई है।
नतीजा
स्थानीय निकाय चुनावों में लगातार हो रही देरी शहरी विकास और बुनियादी ढांचे को बुरी तरह प्रभावित कर रही है। जब तक जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि जिम्मेदारी नहीं निभाएंगे, तब तक शहरों की समस्याओं का समाधान अधूरा ही रहेगा।
👉 साफ है कि शहरी ढांचे को मजबूत करने के लिए सबसे पहले स्थानीय निकाय चुनावों को समय पर कराना होगा और परिषदों को मजबूत अधिकार देने होंगे। तभी शहरों की समस्याओं का हल निकल पाएगा।