कमलनाथ सरकार गिरने की कहानी फिर सुर्खियों में
मध्यप्रदेश की राजनीति एक बार फिर गर्मा गई है। करीब साढ़े पाँच साल पहले अचानक गिरी कांग्रेस सरकार का जिन्न फिर बाहर आ गया है। एक पॉडकास्ट और सोशल मीडिया पोस्ट ने उस राजनीतिक घटनाक्रम को ताज़ा कर दिया, जिसने 15 महीने पुरानी कमलनाथ सरकार को धराशायी कर दिया था। अब दिग्विजय सिंह, कमलनाथ और भाजपा मंत्री विश्वास सारंग के बयानों ने इस मुद्दे को और उभार दिया है।
दिग्विजय सिंह का खुलासा
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने अपने पॉडकास्ट में उस दौर की अंदरूनी बातों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि ग्वालियर-चंबल संभाग में कांग्रेस की सरकार को लेकर एक उद्योगपति और परिवार से जुड़े व्यक्ति से बातचीत हुई थी। तय हुआ था कि वहां वही होगा जो दोनों नेता चाहेंगे। इसके लिए एक विश लिस्ट भी बनाई गई जिस पर दिग्विजय और एक अन्य नेता ने दस्तखत किए। लेकिन उस विश लिस्ट का पालन नहीं हुआ और नतीजा यह हुआ कि सरकार गिर गई। दिग्विजय के इस बयान के बाद राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई।
कमलनाथ ने तोड़ी चुप्पी
दिग्विजय के बयान के बाद कमलनाथ ने भी चुप्पी तोड़ी। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि पुरानी बातों को उखाड़ने से कोई फायदा नहीं, लेकिन सच यही है कि व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और नाराज़गी के चलते ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस के विधायकों को तोड़ा। उन्हें यह लगता था कि सरकार असल में दिग्विजय सिंह चला रहे हैं, इसीलिए उन्होंने बगावत का रास्ता चुना। कमलनाथ ने साफ किया कि उनकी सरकार का पतन इसी भीतरघात का परिणाम था।
सिंधिया का जवाब
पत्रकारों ने जब ज्योतिरादित्य सिंधिया से इस विवाद पर प्रतिक्रिया मांगी तो उन्होंने इसे “अतीत की बात” बताते हुए टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। उनका कहना था कि अब वह इस मुद्दे पर बोलना नहीं चाहते।
विश्वास सारंग का तंज
इधर भाजपा ने भी इस मामले में चुटकी लेने का मौका नहीं गंवाया। कैबिनेट मंत्री विश्वास सारंग ने कहा कि दिग्विजय और कमलनाथ की बातों से यह साफ हो गया है कि कांग्रेस आपसी गुटबाजी और वादाखिलाफी का शिकार रही। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि यह सच्चाई अब जनता के सामने आ गई है।
जीतू पटवारी ने साधा संतुलन
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने इस पूरे विवाद को शांत करने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि दिग्विजय और कमलनाथ का रिश्ता 45 साल पुराना है, दोनों बड़े-छोटे भाई की तरह हैं। अब पुरानी बातों पर चर्चा करने का कोई औचित्य नहीं है। हमें भविष्य की ओर देखना चाहिए और इस पर ध्यान देना चाहिए कि कांग्रेस की सरकार दोबारा कैसे बने।
पृष्ठभूमि: 2018 से 2020 का सफर
दिसंबर 2018 में कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस ने 15 साल बाद मध्यप्रदेश की सत्ता हासिल की थी। यह सरकार सात विधायकों के बाहरी समर्थन—चार निर्दलीय, दो बसपा और एक सपा—से बनी थी। लेकिन मार्च 2020 में सिंधिया समर्थक 22 विधायकों के इस्तीफे और भाजपा में शामिल होने से सरकार गिर गई।
निष्कर्ष
आज जब दिग्विजय, कमलनाथ और भाजपा नेता फिर से इस मुद्दे पर बयानबाज़ी कर रहे हैं, तब यह सवाल फिर उठ रहा है कि आखिर 2020 में कमलनाथ सरकार किस वजह से गिरी? क्या यह भीतरघात था, व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा थी या राजनीतिक रणनीति? सच्चाई चाहे जो भी हो, लेकिन यह मामला अब भी मध्यप्रदेश की राजनीति का अहम अध्याय बना हुआ है।