कानपुर में रेलवे ट्रैक पर गैस सिलेंडर रखकर सैकड़ों लोगों की जान लेने की साजिश की गई है, जो कि 14 दिनों में ट्रेन पलटाने की पांचवीं घटना है। पहले की घटनाओं ने यह संकेत दिया था कि शायद यह किसी स्थानीय व्यक्ति की हरकत है, लेकिन लगातार हो रही साजिशों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यह केवल एक सिरफिरे की करतूत नहीं हो सकती; मामला बेहद गंभीर है।
कानपुर में दो बार गैस सिलेंडर रखकर हादसे की साजिश, अजमेर में पटरियों पर सीमेंट ब्लॉक रखकर मालगाड़ी को बेपटरी करने की कोशिश, सूरत में फिश प्लेट खोलने और रामपुर में पटरी पर खंभा रखकर निर्दोष लोगों की जान लेने के प्रयास में एक विशिष्ट पैटर्न देखने को मिल रहा है। इन घटनाओं की सच्चाई इनफोर्समेंट एजेंसियों की जांच के बाद ही स्पष्ट होगी, लेकिन यह स्पष्ट है कि इसके पीछे जनमानस को गहरा घाव पहुंचाने की कोशिश हो रही है। किसी बड़े नेटवर्क की संलिप्तता की आशंका जताई जा रही है, लेकिन यह नेटवर्क आपराधिक तत्वों का नहीं लगता, क्योंकि अपराधी आमतौर पर आर्थिक लाभ के लिए काम करते हैं। ऐसे में सवाल यह है कि असल राज क्या है?
ट्रेन भारत की लाइफलाइन हैं, जो लोगों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाती हैं। पहले भी शवों के सौदागरों ने ट्रेनों को निशाना बनाकर सैकड़ों निर्दोषों की जान ली है, जैसे समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट और मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए विस्फोटों में। हालाँकि, अभी तक की जांच में कोई ऐसा तथ्य नहीं मिला है जो किसी विशेष दिशा में संदेह को बढ़ाए। फिर भी, लगातार हो रही घटनाओं से यह स्पष्ट हो गया है कि रेलवे प्रणाली की सुरक्षा को लेकर बहुत अधिक सतर्कता की आवश्यकता है, न केवल सुरक्षा एजेंसियों के स्तर पर, बल्कि नागरिकों के स्तर पर भी।