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अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे पर सर्वोच्च न्यायालय में मतभेद…..

सुप्रीम कोर्ट में AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर मतभेद, तीन न्यायाधीशों ने 1981 के आदेश को कानूनन गलत बताया और अल्पसंख्यक संस्थान के मानदंडों पर नए मापदंड सुझाए।

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Last updated: November 9, 2024 2:38 PM
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Aligarh Muslim University | Minority Status | Justice Dipankar Datta
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Highlights
  • सुप्रीम कोर्ट में एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर मतभेद उभरे, तीन न्यायाधीशों ने संदर्भ को कानूनन गलत ठहराया।
  • जस्टिस दीपांकर दत्ता ने स्पष्ट रूप से कहा कि एएमयू अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान नहीं है।
  • जस्टिस कांत ने कहा कि दो जजों की पीठ को 7 जजों की पीठ के लिए मामले का संदर्भ देने का अधिकार नहीं है, यह मुख्य न्यायाधीश का कार्य है।
  • जस्टिस कांत, दत्ता और शर्मा ने 1981 के आदेश को गलत ठहराया, जिसमें एस. अजीज बाशा के मामले को 7 जजों की पीठ के पास भेजने की बात की गई थी।

Aligarh Muslim University के मामले में बहुमत और असहमति, न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा- AMU अल्पसंख्यक संस्थान नहीं

Aligarh Muslim University (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे के मामले में जहां बहुमत ने इस संदर्भ को उचित माना, वहीं जस्टिस कांत और जस्टिस दत्ता ने अपनी असहमति में, और जस्टिस एस सी शर्मा ने अपने अलग निर्णय में इसे कानून की दृष्टि से गलत ठहराया। जस्टिस दत्ता ने स्पष्ट रूप से कहा कि एएमयू एक अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान नहीं है।

तीन असहमति जताने वाले जजों की राय

तीन असहमति जताने वाले जजों में, जस्टिस सुर्या कांत, दीपांकर दत्ता और एस सी शर्मा का मानना था कि 1981 में दो जजों की पीठ द्वारा एस. अजीज बाशा बनाम भारत सरकार (1967) मामले का संदर्भ गलत था। जस्टिस कांत के अनुसार, यह संदर्भ “कई गैरकानूनीताओं” से प्रभावित था।

अंजुमन-ए-रहमानिया केस में एस. अजीज बाशा पर सवाल

अंजुमन-ए-रहमानिया बनाम डिस्ट्रिक्ट इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल्स (1981) मामले में दो जजों की पीठ ने वीएमएचएस रहमानिया इंटर कॉलेज के अल्पसंख्यक दर्जे पर फैसला करते हुए एस. अजीज बाशा के निर्णय की सत्यता पर संदेह जताया। कोर्ट ने कहा था कि यह मामला कम से कम 7 जजों की पीठ के समक्ष सुना जाए ताकि एस. अजीज बाशा के मामले पर पुनर्विचार हो सके।

“खबरीलाल न्यूज़ में यह भी पढ़ें” जम्मू-कश्मीर विधानसभा में हुआ हंगामा,

अल्पसंख्यक संस्थान के लिए प्रशासनिक नियंत्रण की आवश्यकता

जस्टिस कांत ने कहा कि अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान का दर्जा पाने के लिए यह साबित करना जरूरी है कि उस संस्थान का प्रशासनिक नियंत्रण अल्पसंख्यक समुदाय के पास है। बहुमत ने इसे अनावश्यक बताया था।

न्यायमूर्ति दत्ता की चेतावनी

जस्टिस दत्ता ने बहुमत की राय को खारिज करते हुए कहा कि इससे खतरनाक मिसाल बनेगी। उन्होंने केसवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) के उदाहरण का हवाला दिया और कहा कि “कल को दो जजों की पीठ कह सकती है कि मुझे ‘बेसिक स्ट्रक्चर’ पर संदेह है और इसे 15 जजों की पीठ के समक्ष भेजा जाना चाहिए।”

2019 के संदर्भ पर जस्टिस दत्ता की टिप्पणी

जस्टिस दत्ता ने कहा कि 2019 में एएमयू बनाम नरेश अग्रवाल के मामले में 7 जजों की पीठ को संदर्भित करने के आदेश में पी ए इनामदार बनाम महाराष्ट्र राज्य (2005) और इस्लामिक एकेडमी ऑफ एजुकेशन बनाम कर्नाटक राज्य (2003) जैसे दो संविधान पीठ मामलों का उल्लेख नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि इन मामलों में अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के मानदंड तय नहीं करने की जरूरत महसूस नहीं की गई थी।

न्यायमूर्ति एस सी शर्मा की व्यक्तिगत राय

जस्टिस एस सी शर्मा ने अपने व्यक्तिगत राय में कहा कि 1981 में सीधे 7 जजों की पीठ को मामला भेजना सही नहीं था। उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यक छात्रों के लिए एएमयू को “सुरक्षित स्थान” बताना गलत है, क्योंकि ऐसी संस्थाएं राष्ट्रीय महत्त्व की होती हैं और सभी समुदायों के लिए शिक्षा केंद्र का काम करती हैं।

अल्पसंख्यक संस्थान की स्थापना के लिए न्यायमूर्ति शर्मा के मापदंड

जस्टिस शर्मा ने अल्पसंख्यक संस्थान की पहचान के लिए कुछ व्यापक मापदंड तय किए। उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय को संस्थान की स्थापना में प्रमुख भूमिका निभानी चाहिए और प्रशासनिक मामलों में अंतिम अधिकार भी उसी समुदाय के पास होना चाहिए।

TAGGED:Aligarh Muslim UniversityJustice DuttaJustice KantMinority StatusSupreme Court Verdict
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