शिमला समझौता सस्पेंड: पाकिस्तान के फैसले से बढ़ा भारत-पाक तनाव
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम उठाए। जवाब में पाकिस्तान ने 24 अप्रैल को एक आपात बैठक बुलाई और शिमला समझौते को सस्पेंड करने की घोषणा कर दी। इससे दोनों देशों के बीच पहले से मौजूद तनाव और गहराता दिखाई दे रहा है।
क्या है शिमला समझौता?
शिमला समझौता 2 जुलाई 1972 को भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ था। यह समझौता भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच हुआ था। इसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच शांतिपूर्ण संबंधों को स्थापित करना और आपसी विवादों को बातचीत के जरिए सुलझाना था।
इस समझौते के अनुसार, दोनों देश किसी भी विवाद को तीसरे पक्ष की मध्यस्थता के बिना, आपसी बातचीत से हल करने पर सहमत हुए थे। साथ ही, बल प्रयोग या हिंसा से दूर रहने की भी प्रतिबद्धता जताई गई थी। इसी समझौते के तहत 1971 के युद्ध के बाद बनी नई सीमा को ‘लाइन ऑफ कंट्रोल’ (LoC) का दर्जा दिया गया, जिसे दोनों देशों ने मान्यता दी थी।
पाकिस्तान का पलटवार: समझौते को किया सस्पेंड
भारत द्वारा सिंधु जल संधि को आंशिक रूप से समाप्त करने और अन्य कूटनीतिक कदमों के बाद पाकिस्तान ने नाराजगी जाहिर की। इसी के तहत पाकिस्तान ने अब शिमला समझौते को भी सस्पेंड करने का फैसला किया है। इसके पीछे उसका तर्क है कि भारत ने पहले समझौतों का उल्लंघन किया है, इसलिए पाकिस्तान को भी अधिकार है कि वह अपने फैसले पर पुनर्विचार करे।
भारत पर क्या पड़ेगा असर?
अगर शिमला समझौता पूरी तरह से रद्द होता है, तो पाकिस्तान एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर मुद्दे को उठाने की कोशिश कर सकता है। हालांकि, अतीत में उसे इस तरह की कोशिशों में विशेष सफलता नहीं मिली है। फिर भी वह संयुक्त राष्ट्र या OIC जैसे मंचों पर समर्थन जुटाने की कोशिश कर सकता है।
इस समझौते के खत्म होने से पाकिस्तान को यह बहाना मिलेगा कि वह LoC को मानने से इनकार करे, जिससे सीमा पर तनाव और झड़पों की आशंका बढ़ सकती है। इससे दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करने की प्रक्रिया को झटका लग सकता है।
पाकिस्तान को कितना नुकसान?
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पहले से ही संकट में है। भारत के साथ रिश्ते बिगाड़कर वह खुद को और ज्यादा अंतरराष्ट्रीय अलगाव की स्थिति में डाल सकता है। विदेशी निवेश में कमी, अंतरराष्ट्रीय कर्ज मिलने में रुकावट, और राजनीतिक अस्थिरता – ये सभी प्रभाव पाकिस्तान को झेलने पड़ सकते हैं।
FATF जैसी संस्थाओं की निगरानी पहले ही पाकिस्तान पर है, ऐसे में यदि वह शांति समझौते से खुद को अलग करता है, तो उस पर अमेरिका और यूरोपीय देशों का दबाव और बढ़ सकता है।
अब भारत की रणनीति क्या हो सकती है?
शिमला समझौते के सस्पेंड होने के बाद भारत को सीमावर्ती क्षेत्रों में अपनी स्थिति और मजबूत करने का अवसर मिल सकता है। साथ ही पाकिस्तान के खिलाफ कूटनीतिक और सैन्य दृष्टिकोण से सख्त रणनीति अपनाई जा सकती है।
पाकिस्तान द्वारा खुद ही समझौते से हटने के बाद, उसकी “बातचीत से भाग रहा भारत” वाली दलील अब कमजोर हो जाएगी। इससे उसकी अंतरराष्ट्रीय साख को भी नुकसान पहुंचेगा और भारत के पक्ष को अधिक मजबूती मिल सकती है।