संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग, संजय सिंह ने पीएम को लिखा पत्र
राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है। इस पत्र में उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा, पारदर्शिता और विदेश नीति को लेकर कई गंभीर सवाल उठाए हैं।
ऑपरेशन सिंदूर और सीजफायर पर चिंता
संजय सिंह ने अपने पत्र में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का ज़िक्र करते हुए कहा कि यह भारतीय सेना का साहसिक और निर्णायक कदम था, जिसने देश की एकता और सुरक्षा को मज़बूती से प्रस्तुत किया। पहलगाम की घटना के बाद सेना ने आतंकियों के खिलाफ सख्त अभियान चलाया, लेकिन इसके बावजूद अचानक सीजफायर की घोषणा ने सबको चौंका दिया।
सर्वदलीय बैठक में पीएम की गैरमौजूदगी
उन्होंने सवाल उठाया कि इस पूरे घटनाक्रम के बीच हुई दो सर्वदलीय बैठकों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्यों नहीं पहुंचे। उनके अनुसार, ऐसे संकट के समय में देश की जनता और राजनीतिक दल प्रधानमंत्री से नेतृत्व की उम्मीद करते हैं, लेकिन उनकी अनुपस्थिति ने विश्वास को चोट पहुंचाई है।
विदेशी दबाव में लिया गया फैसला?
पत्र में उन्होंने यह भी दावा किया कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एक ट्वीट के बाद भारत ने सीजफायर की घोषणा कर दी। ट्रंप ने कहा था कि अगर भारत और पाकिस्तान लड़ाई बंद नहीं करेंगे तो अमेरिका दोनों देशों से व्यापार बंद कर देगा। संजय सिंह ने आरोप लगाया कि भारत ने यह फैसला विदेशी दबाव में लिया, जिससे देश की संप्रभुता पर सवाल उठता है।
प्रधानमंत्री कार्यालय की चुप्पी पर सवाल
पत्र में संजय सिंह ने यह भी लिखा है कि अमेरिकी दावों पर भारत सरकार की तरफ से अब तक कोई स्पष्टीकरण या खंडन सामने नहीं आया है। इस चुप्पी ने जनता के बीच कई आशंकाएं पैदा कर दी हैं और सरकार की विदेश नीति और संप्रभुता के प्रति प्रतिबद्धता को संदेह के घेरे में ला दिया है।
दोषियों की पहचान में देरी क्यों?
उन्होंने यह भी पूछा है कि पहलगाम हमले के जिम्मेदार लोगों की पहचान और कार्रवाई में देरी क्यों हो रही है। क्या सरकार के पास इस बारे में कोई ठोस योजना नहीं है?
विशेष सत्र की मांग
इन तमाम सवालों और हालात को देखते हुए संजय सिंह ने संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है। उनका कहना है कि इस सत्र के जरिए सरकार को ऑपरेशन सिंदूर, सीजफायर और उससे जुड़े निर्णयों पर पारदर्शी जवाब देना चाहिए। इससे न सिर्फ संवैधानिक संस्थाओं में लोगों का भरोसा बहाल होगा, बल्कि भारत की विदेश नीति और सुरक्षा रणनीति को लेकर भी स्पष्टता आएगी।