गाजियाबाद के डासना स्थित देवी मंदिर के महंत और जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद द्वारा पैगंबर मोहम्मद पर दिए गए विवादास्पद बयान के कारण उत्तर प्रदेश में बवाल जारी है। सोमवार को मेरठ, अलीगढ़, आगरा, एटा और कन्नौज में मुस्लिम समुदाय के लोग सड़कों पर उतर आए, जबकि गाजियाबाद में नरसिंहानंद के समर्थकों ने भी प्रदर्शन किया।
मेरठ के मुंडाली में बिना अनुमति के किया गया प्रदर्शन हिंसक हो गया, जहां भीड़ ने पुलिस पर पथराव किया। पुलिस ने इस मामले में 30 नामजद और 150 अज्ञात के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की है। जुलूस में शामिल युवा और बच्चों ने तलवारें और लाठी-डंडे लहराते हुए धार्मिक और देशविरोधी नारे लगाए।
अलीगढ़ में एएमयू के छात्रों में भी विरोध का आक्रोश देखने को मिला, जहां हजारों की संख्या में छात्रों ने मार्च निकाला। मखदूम नगर के निवासी मो. अकबर की तहरीर पर नरसिंहानंद के खिलाफ जीरो एफआईआर दर्ज की गई है। आगरा में भी उत्तर प्रदेश मुस्लिम महापंचायत ने कलेक्ट्रेट तक मार्च निकाला।
गाजियाबाद में हुई हिंसा के बाद अब तक दोनों पक्षों की ओर से कुल 16 मुकदमे दर्ज किए जा चुके हैं, जिसमें 16 लोगों की गिरफ्तारी की गई है। सहारनपुर के शेखपुरा में रविवार को हुए बवाल की जांच में सीसीटीवी फुटेज और वीडियो के आधार पर कई अन्य उपद्रवियों की पहचान की गई है। जिन्हें गिरफ्तार किया गया था, उन्हें सोमवार को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
गाजियाबाद में नरसिंहानंद के समर्थकों ने पुलिस आयुक्त के कार्यालय के बाहर प्रदर्शन किया और अधिकारियों से पूछा कि यति नरसिंहानंद कहां हैं। पुलिस ने इस मामले में कविनगर थाने में 150 अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है।
यति नरसिंहानंद सरस्वती फाउंडेशन की महासचिव डॉ. उदिता त्यागी ने चेतावनी दी है कि अगर महामंडलेश्वर को जल्द नहीं मिलाया गया, तो हिंदू संगठन 13 अक्टूबर को महापंचायत आयोजित करेंगे। उनका आरोप है कि पुलिस ने 5 अक्टूबर को बम्हेटा के पार्षद प्रमोद यादव के घर से महामंडलेश्वर को उठाया था, और तब से उनका कुछ पता नहीं चल रहा है।
पैगंबर पर विवादास्पद बयान देने के बाद यति नरसिंहानंद, जिनका असली नाम दीपक त्यागी है, विवादों में घिर गए हैं। वे बुलंदशहर के शिकारपुर तहसील के हिरनौट गांव के निवासी हैं और उनकी शिक्षा में कई उपलब्धियां हैं, जैसे कि 1992 में मैथमेटिक्स ओलंपियाड में रिकॉर्ड बनाना। शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने कपड़ों का व्यापार किया और लंदन में नौकरी की। 2001 में, उन्होंने दो साल की बेटी और पत्नी को छोड़कर संन्यास लेने का निर्णय लिया और 2002 में ब्रहानंद सरस्वती से दीक्षा लेकर यति नरसिंहानंद सरस्वती बने। उन्होंने डासना देवी मंदिर के महंत के रूप में कार्य किया है और उनके खिलाफ अब तक 80 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज हो चुके हैं।