रितुपर्णा की कहानी: असफलता को बनाया सफलता की सीढ़ी
मेडिकल में असफलता बनी नई शुरुआत
कई बार ज़िंदगी हमें उस रास्ते पर ले जाती है, जिसकी हमने कभी कल्पना नहीं की होती – और वही रास्ता हमें सफलता के शिखर तक पहुंचाता है। कर्नाटक के यमरवल्ली गांव की रहने वाली रितुपर्णा केएस की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। मेडिकल में करियर बनाने का सपना लेकर चली रितुपर्णा को जब सफलता नहीं मिली, तब भी उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने अपने लक्ष्य को बदलने के बजाय अपने जुनून को नए रूप में ढाला और रोबोटिक्स और ऑटोमेशन में दाखिला लिया।
रोबोटिक्स में मिला करियर का नया रास्ता
रितुपर्णा ने सह्याद्री कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड मैनेजमेंट में रोबोटिक्स एंड ऑटोमेशन की पढ़ाई शुरू की। यहीं से उनके करियर का असली मोड़ आया। उन्हें मशीन डिजाइनिंग और ऑटोमेशन में खास रुचि होने लगी। इस रुचि को और गहराई दी जब उन्होंने एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में अपने एक साथी के साथ मिलकर “हार्वेस्टिंग एंड स्टायर” पर रिसर्च प्रस्तुत किया। इस सम्मेलन में सिंगापुर, जापान, चीन और रूस जैसे देशों के प्रतिभागियों के बीच उन्होंने गोल्ड मेडल जीता।
रोल्स-रॉयस में इंटर्नशिप से मिली उड़ान
कॉलेज के तीसरे वर्ष में रितुपर्णा ने इंटर्नशिप के लिए आवेदन किया और उनकी अकादमिक उपलब्धियों ने उन्हें रोल्स-रॉयस जैसी प्रतिष्ठित कंपनी में जगह दिलाई। यह सफर आसान नहीं था – कंपनी ने उनकी तकनीकी क्षमताओं को परखने के लिए उन्हें कई कठिन प्रोजेक्ट्स पर काम करने के मौके दिए। लेकिन रितुपर्णा ने हर बार खुद को साबित किया और अपने समर्पण से सभी को प्रभावित किया।
ग्रेजुएशन से पहले ही 72 लाख का पैकेज
रितुपर्णा की मेहनत का फल उन्हें तब मिला जब स्नातक पूरा होने से पहले ही रोल्स-रॉयस ने उन्हें नौकरी का प्रस्ताव दे दिया। यह प्रस्ताव 72 लाख रुपये सालाना के पैकेज का था – एक ऐसी उपलब्धि जो उनकी उम्र के बहुत कम युवाओं को हासिल होती है। महज 20 साल की उम्र में वह कंपनी की सबसे कम उम्र की महिला प्रोफेशनल बन गईं।
वर्तमान स्थिति और आगे का सफर
फिलहाल रितुपर्णा अपनी पढ़ाई के साथ-साथ रोल्स-रॉयस के लिए ऑनलाइन काम कर रही हैं। सातवां सेमेस्टर पूरा करने के बाद वह कंपनी में फुल टाइम जॉइन करेंगी। उनकी यह उपलब्धि केवल उनके लिए ही नहीं, बल्कि उन हजारों युवाओं के लिए भी प्रेरणा है जो किसी एक परीक्षा में असफल होने के बाद अपने सपनों से समझौता कर लेते हैं।
निष्कर्ष
रितुपर्णा की कहानी यह साबित करती है कि असफलता अंत नहीं होती, बल्कि एक नए रास्ते की शुरुआत होती है। सही दिशा, मेहनत और आत्मविश्वास के साथ कोई भी सपना साकार किया जा सकता है – चाहे रास्ता कितना भी अलग क्यों न हो।