महाकुंभ में एमटेक बाबा की हैरान करने वाली कहानी
प्रयागराज। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 13 जनवरी से शुरू हुए महाकुंभ में आस्था की डुबकी लगाने के लिए देशभर से साधु-संत जुटे हैं। यहां पर विभिन्न प्रकार के साधु-संतों से आम श्रद्धालु मिलते हैं, और उनमें से कुछ बाबा सोशल मीडिया पर भी बहुत वायरल हो चुके हैं। हाल ही में आईआईटी बाबा के चर्चे हुए थे, और अब एक और बाबा हैं, जिनका नाम है एमटेक बाबा। उनके जीवन की कहानी सुनकर लोग हैरान रह जाते हैं।
एमटेक बाबा का जीवन: एक बदलाव की कहानी
एमटेक बाबा, जिनका असली नाम दिगंबर कृष्ण गिरि है, ने अपनी जीवन यात्रा को लेकर कई बातें साझा की हैं। उन्होंने बताया कि 2010 में उन्होंने संन्यास लिया और 2019 में नागा बाबा की दीक्षा ली। इसके बाद उन्होंने हरिद्वार में 10 दिन तक भीख मांगी। एमटेक बाबा का कहना है कि कभी वे लाखों रुपये महीना कमाते थे और 400 लोगों को सैलरी बांटते थे, लेकिन अब उनका जीवन पूरी तरह से बदल चुका है। उन्होंने यह भी कहा कि अधिक पैसा होने से आदतें खराब हो जाती हैं और मन को शांति नहीं मिलती।
एमटेक बाबा का शाही जीवन और साधु बनने का सफर
दिगंबर कृष्ण गिरि का जन्म दक्षिण भारत के एक तेलुगू ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने कर्नाटका विश्वविद्यालय से एमटेक की पढ़ाई की और उसके बाद कई नामी कंपनियों में काम किया। उनकी आखिरी नौकरी दिल्ली में थी, जहां वह एक निजी कंपनी में एक अच्छे पद पर थे। यहां तक कि उनके अधीन 400 से अधिक लोग काम करते थे। लेकिन एक दिन उन्होंने सब कुछ छोड़ दिया और साधु जीवन की ओर रुख किया।
उन्होंने बताया कि जब वे अखाड़ों में शामिल होने के लिए गए थे, तो उन्हें कोई उत्तर नहीं मिला। इसके बाद, उन्होंने हरिद्वार में गंगा नदी में अपना सारा धन प्रवाहित कर दिया और 10 दिन तक भीख मांगी। उनका मानना था कि ज्यादा पैसा होने से आदमी की आदतें खराब हो जाती हैं, और वह मानसिक शांति नहीं पा सकता।
निरंजन अखाड़े में दीक्षा और नया अध्याय
एमटेक बाबा ने निरंजन अखाड़े में भी दीक्षा ली और वहां के महंत श्री राम रतन गिरी महाराज से अपने जीवन की दिशा को बदलने की प्रेरणा ली। उन्होंने 2019 में इस दिशा में कदम रखा और 2021 में अल्मोड़ा छोड़कर उत्तरकाशी के एक छोटे से गांव में रहने लगे।
इस प्रकार, एमटेक बाबा की जीवन यात्रा यह बताती है कि कैसे एक व्यक्ति अपनी सुख-सुविधाओं को छोड़कर आत्मा की शांति की तलाश में साधु जीवन की ओर बढ़ सकता है। उनके जीवन की कहानी प्रेरणा देती है कि शांति और संतुष्टि बाहरी चीजों में नहीं, बल्कि अंदर की दुनिया में होती है।
यह कहानी महाकुंभ के माध्यम से उन सभी साधुओं और संतों को सामने लाती है, जिन्होंने भौतिक सुख-सुविधाओं को छोड़कर आत्म-निर्भरता और साधना की ओर रुख किया।