ब्रिक्स सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी का संबोधन: वैश्विक संस्थाओं में बदलाव की जरूरत पर दिया ज़ोर
ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में आयोजित ब्रिक्स सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैश्विक साउथ यानी विकासशील देशों की उपेक्षा और दोहरे मानकों का मुद्दा प्रमुखता से उठाया। उन्होंने कहा कि आज के समय में भी ग्लोबल साउथ के हितों को प्राथमिकता नहीं दी जाती, और इस क्षेत्र को केवल सांकेतिक समर्थन मिलता है, ठोस मदद नहीं।
ग्लोबल साउथ के लिए न्याय की मांग
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में स्पष्ट किया कि जलवायु परिवर्तन, सतत विकास और तकनीक की उपलब्धता जैसे गंभीर मसलों पर विकासशील देशों को अब तक केवल प्रतीकात्मक समर्थन मिला है। उनका कहना था कि ग्लोबल साउथ को अब सिर्फ सहानुभूति नहीं, वास्तविक भागीदारी और बराबरी चाहिए।
20वीं सदी के टाइपराइटर से नहीं चलेगा 21वीं सदी का सॉफ्टवेयर
अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने वैश्विक संस्थाओं की अप्रासंगिकता पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि 20वीं सदी में बनी संस्थाएं आज की दुनिया की चुनौतियों को हल करने में असमर्थ हैं। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जैसे टाइपराइटर से आधुनिक सॉफ्टवेयर नहीं चलाया जा सकता, वैसे ही पुरानी सोच से नई समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता।
वैश्विक संस्थाओं में ठोस सुधार की ज़रूरत
मोदी ने ज़ोर देकर कहा कि अब समय आ गया है कि वैश्विक संस्थाएं अपने ढांचे और कार्यशैली में ठोस और प्रभावी सुधार करें। उन्होंने कहा कि केवल दिखावटी बदलावों से काम नहीं चलेगा, बल्कि इन सुधारों का असली असर ज़मीन पर दिखाई देना चाहिए। उन्होंने बहुध्रुवीय और समावेशी विश्व व्यवस्था की आवश्यकता बताई, जिसमें सभी देशों को बराबरी का दर्जा और आवाज़ मिले।
ब्रिक्स में भारत की भूमिका और विस्तार पर विचार
प्रधानमंत्री ने सम्मेलन के दौरान यह भी स्पष्ट किया कि भारत ब्रिक्स मंच पर हर मुद्दे में रचनात्मक योगदान देने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि भारत हमेशा मानवता के व्यापक हित में कार्य करता आया है। ब्रिक्स के विस्तार पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि नए देशों का जुड़ना इस संगठन की लचीलापन और समय के साथ बदलाव की क्षमता को दर्शाता है।
सोशल मीडिया पर साझा की भावनाएं
सम्मेलन के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने लिखा कि ब्रिक्स की ओर से रियो डी जेनेरियो में एक अहम कदम उठाया गया है, जो सहयोग से साझेदारी की ओर बढ़ा है। उन्होंने यह भी कहा कि ब्रिक्स में समावेशी और समानता आधारित वैश्विक भविष्य की अपार संभावनाएं मौजूद हैं।
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री मोदी का यह संबोधन स्पष्ट रूप से भारत की वैश्विक भूमिका, जिम्मेदारी और वैश्विक संस्थाओं में सुधार की दिशा में प्रतिबद्धता को दर्शाता है। ब्रिक्स सम्मेलन अब केवल एक मंच नहीं, बल्कि एक ऐसी साझेदारी बन चुका है जो दुनिया के भविष्य को आकार देने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।