पीएम मोदी ने जारी किया ऐतिहासिक सिक्का, सम्राट राजेंद्र चोल प्रथम की जयंती पर विशेष सम्मान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली जिले स्थित गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर में पहुंचकर तिरुवथिरई महोत्सव में भाग लिया। इस खास मौके पर उन्होंने सम्राट राजेंद्र चोल प्रथम की जयंती के उपलक्ष्य में एक विशेष स्मारक सिक्का जारी किया। यह आयोजन दक्षिण-पूर्व एशिया में चोल साम्राज्य की ऐतिहासिक नौसैनिक विजय की हजारवीं वर्षगांठ के अवसर पर किया गया था।
सम्राट राजेंद्र चोल प्रथम: समुद्र के विजेता
राजेंद्र चोल प्रथम को इतिहास में ‘समुद्र का सम्राट’ कहा गया है। वे चोल साम्राज्य के सबसे प्रभावशाली और रणनीतिक दृष्टिकोण वाले शासकों में से एक माने जाते हैं। उनके शासनकाल में चोल साम्राज्य ने दक्षिण भारत से लेकर दक्षिण-पूर्व एशिया तक अपनी शक्ति का विस्तार किया। उन्होंने गंगईकोंडा चोलपुरम को अपनी राजधानी बनाया और वहां एक विशाल मंदिर का निर्माण कराया, जो आज भी चोल वास्तुकला और शैव भक्ति का प्रतीक माना जाता है।
अद्वितीय नौसेना और रणनीति से रचा इतिहास
राजेंद्र चोल प्रथम के पास उस युग की सबसे मजबूत और संगठित नौसेना थी। उनकी नौसेना ने समंदर के रास्ते इंडोनेशिया तक विजय पताका फहराई। उन्होंने श्रीविजय साम्राज्य के राजा विजयतुंगवर्मन पर 14 अलग-अलग समुद्री मार्गों से एकसाथ हमला किया। उनकी युद्धनौकाओं पर भारी हथियार, पत्थर फेंकने वाली मशीनें और यहाँ तक कि हाथी तक लादे जाते थे। इस युद्ध में विजय प्राप्त कर उन्होंने विजयतुंगवर्मन को बंदी बना लिया था। यह अभियान भारतीय उपमहाद्वीप के समुद्री इतिहास में एक निर्णायक मोड़ था।
मंदिर जो बने विश्व धरोहर का हिस्सा
राजेंद्र चोल प्रथम के शासनकाल में बने मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और कलात्मक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण हैं। ये मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों में शामिल हैं और चोल कालीन कांस्य मूर्तियों, शिलालेखों और जटिल कलाकृतियों के लिए प्रसिद्ध हैं। तिरुवथिरई उत्सव भी तमिल शैव परंपरा की समृद्धि को दर्शाता है।
चोल साम्राज्य की कहानी अब परदे पर भी
चोल साम्राज्य की गौरवगाथा को साउथ के विख्यात फिल्म निर्देशक मणिरत्नम ने बड़े परदे पर जीवंत किया है। ‘पोन्नियिन सेल्वन’ नामक दो भागों वाली फिल्म इस ऐतिहासिक कालखंड पर आधारित है। इस फिल्म ने राजेंद्र चोल जैसे शासकों की रणनीति, शौर्य और कला-प्रेम को दर्शकों तक पहुँचाया और दोनों ही भाग बॉक्स ऑफिस पर सफल रहे।
राजेंद्र चोल प्रथम की दूरदर्शिता और विजय अभियान आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं, जिनके योगदान को अब राष्ट्रीय स्तर पर पुनः स्मरण किया जा रहा है।