भारतीय सेना के ऑपरेशन सिंदूर के बाद सहमा पाकिस्तान, अब कर्ज लेकर बढ़ाया डिफेंस बजट
भारत के जवाब से घबराया पाकिस्तान
हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने कड़ा कदम उठाते हुए ऑपरेशन सिंदूर के तहत आतंकवाद के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की। भारतीय सेना ने सीमापार आतंकी ठिकानों को निशाना बनाते हुए उन्हें तबाह कर दिया। इसके बाद से पाकिस्तान में खलबली मच गई है। बताया जा रहा है कि भारतीय सेना के इस सख्त रुख ने पाकिस्तान की सरकार को डरा दिया है और यही कारण है कि अब पाकिस्तान ने अपनी सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत करने के लिए रक्षा बजट में भारी इजाफा किया है।
कर्ज लेकर बढ़ाया डिफेंस बजट
आर्थिक रूप से पहले से जूझ रहे पाकिस्तान ने अपने 2025-26 के वार्षिक बजट में रक्षा बजट में करीब 18 से 20 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी की है। इस बढ़ोतरी के तहत पाकिस्तान ने रक्षा क्षेत्र पर करीब 2.55 ट्रिलियन पाकिस्तानी रुपये यानी लगभग 9 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च करने का फैसला किया है।
हालांकि, इस बढ़ोतरी की कीमत देश के सामाजिक क्षेत्रों को चुकानी पड़ रही है। स्वास्थ्य, शिक्षा और विकास से जुड़ी योजनाओं के बजट में बड़ी कटौती की गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला देश की आंतरिक स्थिति को और खराब कर सकता है।
सामाजिक विकास पर पड़ी मार
पाकिस्तान की GDP भले ही बीते वर्ष केवल 2.6% की दर से ही बढ़ी हो, लेकिन सेना के बजट में कई गुना ज्यादा इजाफा किया गया है। माना जा रहा है कि लगभग 2550 अरब रुपये की राशि सामाजिक कल्याण के बजट से काटकर रक्षा क्षेत्र में लगा दी गई है। इसका मतलब है कि पाकिस्तान की जनता को अब पहले से भी कम शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं मिलेंगी।
बताया जा रहा है कि सेना के मुकाबले शिक्षा और स्वास्थ्य का बजट बहुत ही मामूली है, जिससे साफ है कि सरकार की प्राथमिकता केवल सुरक्षा है, नागरिक कल्याण नहीं। इस फैसले से शहबाज शरीफ सरकार की सामाजिक प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
कर्ज में डूबा देश, फिर भी सेना को प्राथमिकता
पाकिस्तान के वित्त मंत्री द्वारा पेश किए गए इकोनॉमिक सर्वे के मुताबिक, देश का कर्ज 2024-25 के पहले 9 महीनों में ही 76,000 अरब पाकिस्तानी रुपये तक पहुंच चुका है। ऐसे में यह फैसला कि अधिक कर्ज लेकर रक्षा खर्च बढ़ाया जाए, पाकिस्तान की आर्थिक नीतियों पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाता है।
निष्कर्ष
भारत के ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान को यह अहसास दिला दिया है कि आतंकी गतिविधियों पर चुप बैठने की कीमत उसे चुकानी पड़ेगी। लेकिन पाकिस्तान का अपनी जनता की जरूरतों को नजरअंदाज कर केवल सेना को प्राथमिकता देना, आने वाले समय में आंतरिक संकट को और गहरा कर सकता है।