Kumbh Mela: Indian culture का अद्वितीय पर्व
Kumbh Mela भारत का सबसे विशाल और पवित्र धार्मिक मेला है, जो हर बारहवें वर्ष आयोजित होता है। इसमें करोड़ों श्रद्धालु चार प्रमुख स्थानों—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक—में एकत्र होते हैं और पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। यह मेला विशेष रूप से हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत महत्व रखता है, क्योंकि इसे धार्मिक शुद्धता और मोक्ष प्राप्ति का अवसर माना जाता है।
Kumbh Mela का ज्योतिषीय महत्व
कुम्भ मेला का आयोजन ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर किया जाता है। यह मेला विशेष रूप से पौष पूर्णिमा के दिन शुरू होता है, जबकि मकर संक्रान्ति को इसका विशेष ज्योतिषीय पर्व होता है। मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य और चंद्रमा वृश्चिक राशि में और गुरु ग्रह मेष राशि में प्रवेश करते हैं। इस दिन को “कुम्भ स्नान-योग” कहा जाता है, और इसे अत्यधिक शुभ और मंगलकारी माना जाता है।
कुम्भ का शाब्दिक अर्थ और पौराणिक महत्व (Spiritual Significance)
कुम्भ शब्द का अर्थ “घड़ा” या “सुराही” होता है। यह शब्द वैदिक ग्रंथों में भी मिलता है, और इसके साथ जुड़ा हुआ एक विशेष पौराणिक कथानक है। कुम्भ मेला का आयोजन अमृत के गिरने से संबंधित एक पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है, जिसमें देव-दानवों के बीच समुद्र मंथन से अमृत प्राप्त हुआ था। इस अमृत को प्राप्त करने के लिए देवता और दैत्य बारह दिन तक युद्ध करते रहे थे, और इसी युद्ध के दौरान अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिर गई थीं, जिन स्थानों पर ये बूंदें गिरीं, वहीं कुम्भ मेले का आयोजन होता है।
Kumbh Mela और ग्रहों का प्रभाव
कुम्भ मेला का आयोजन तब होता है जब सूर्य, चंद्रमा और गुरु ग्रह विशेष रूप से उन राशियों में होते हैं, जहां अमृत की बूंदें गिरी थीं। इस समय ग्रहों की स्थिति एक विशेष योग उत्पन्न करती है, जो पवित्र स्नान के लिए उपयुक्त होती है। यही कारण है कि इस समय स्नान करने से श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष की प्राप्ति का विश्वास होता है।
Kumbh Mela का इतिहास
कुम्भ मेले का इतिहास हजारों साल पुराना है। 600 ई.पू. के बौद्ध लेखों में नदी मेलों का उल्लेख मिलता है, और सम्राट चंद्रगुप्त के समय में भी इस तरह के मेलों का आयोजन होता था। समय के साथ-साथ कुम्भ मेला अपने वर्तमान स्वरूप में विकसित हुआ, और आज यह विश्व के सबसे बड़े धार्मिक मेलों में से एक है।

Kumbh Mela का आयोजन: प्रमुख दिन
कुम्भ मेला का आयोजन विभिन्न विशेष दिनों के अनुसार होता है, जिनमें पौष पूर्णिमा, मकर संक्रान्ति, मौनी अमावस्या, वसंत पंचमी, माघी पूर्णिमा और महाशिवरात्रि जैसे दिन प्रमुख हैं। इन दिनों में श्रद्धालु विशेष रूप से स्नान करने के लिए जुटते हैं, और इन दिनों के दौरान मेला क्षेत्र में लाखों की संख्या में लोग एकत्र होते हैं।
Kumbh Mela के प्रमुख स्थल
कुम्भ मेला चार प्रमुख स्थलों पर आयोजित होता है—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। इन स्थानों पर कुम्भ मेला का आयोजन क्रमशः हर बारह वर्ष में एक बार होता है, और इनमें से प्रत्येक स्थान का धार्मिक महत्व है। Prayagraj (पूर्व में इलाहाबाद) में गंगा, यमुन और सरस्वती नदियों का संगम है, जबकि हरिद्वार में गंगा नदी बहती है। उज्जैन और नासिक में भी कुम्भ मेला का आयोजन बड़े धूमधाम से होता है।
कुम्भ मेला: श्रद्धालुओं की अपार भीड़
Kumbh Mela एक ऐसा पर्व है, जिसमें लाखों लोग एक साथ आते हैं। हर बार, इस मेले में एकत्र होने वाली श्रद्धालुओं की संख्या में बढ़ोतरी होती है। 1954 में इलाहाबाद में आयोजित कुम्भ में चालीस लाख लोग उपस्थित हुए थे, जबकि 2013 के कुम्भ मेला में लगभग आठ करोड़ लोग एकत्र हुए थे। इस मेले में आने वाले श्रद्धालु पवित्र नदी में स्नान करके अपनी आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति का आशीर्वाद लेते हैं।
कुम्भ मेला और समाज
कुम्भ मेला न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी एक प्रमुख घटना है। इस मेले में विभिन्न समुदायों के लोग एकत्र होते हैं, और यह मेलमिलाप का प्रतीक बनता है। यहां पर विभिन्न अखाड़ों के संत और साधु भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं, जो धार्मिक प्रवचन और ध्यान की विधियों के माध्यम से लोगों को मार्गदर्शन देते हैं।
कुम्भ मेला की ऐतिहासिक घटनाएँ

“खबरीलाल न्यूज़ में यह भी पढ़ें”शार्दुल ठाकुर: भारतीय क्रिकेट का उभरता सितारा और प्रेरणा…
1995 – इलाहाबाद के अर्धकुम्भ मेले के दौरान, 30 जनवरी को स्नान दिवस पर 2 करोड़ लोग उपस्थित हुए थे।
1998 – हरिद्वार में आयोजित महाकुम्भ में चार महीने के दौरान 5 करोड़ से अधिक श्रद्धालु आए थे। 14 अप्रैल के दिन एक करोड़ से ज्यादा लोग एकत्र हुए थे।
2001 – Prayagraj में हुए कुम्भ मेले में छह हफ्तों के दौरान 7 करोड़ श्रद्धालु पहुंचे, जबकि 24 जनवरी के दिन अकेले 3 करोड़ लोग मौजूद थे।
2003 – नासिक में आयोजित मेले में मुख्य स्नान दिवस पर 60 लाख लोग एकत्र हुए थे।
2004 – उज्जैन कुम्भ मेले के प्रमुख स्नान दिन 5 अप्रैल, 19 अप्रैल, 22 अप्रैल, 24 अप्रैल और 4 मई थे।
2007 – इलाहाबाद में अर्धकुम्भ मेला हुआ था।
2010 – हरिद्वार में कुम्भ मेला आयोजित हुआ।
2013 – इलाहाबाद में कुम्भ मेला 14 जनवरी से 10 मार्च तक चला। यह 55 दिनों तक चला और इस दौरान इलाहाबाद (Prayagraj) सबसे अधिक आबादी वाला शहर बन गया। इस मेले में 5 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में 8 करोड़ लोग एकत्र हुए, जो विश्व की सबसे बड़ी धार्मिक घटना मानी गई।
2015 – नासिक और त्रम्बकेश्वर में एक साथ, 14 जुलाई 2015 को सुबह 6:16 बजे कुम्भ मेला शुरू हुआ और 25 सितंबर 2015 को समाप्त हुआ।
2016 – उज्जैन में कुम्भ मेला 22 अप्रैल से शुरू हुआ।
2019 – इलाहाबाद में अर्धकुम्भ मेला आयोजित हुआ।
2021 – हरिद्वार में कुम्भ मेला हुआ।
2025 – Prayagraj में महाकुंभ मेला 2025 में आयोजित होगा।

साल 2025 में महाकुंभ 13 जनवरी से शुरू होकर 26 फ़रवरी तक चलेगा.
- यह मेला पौष पूर्णिमा से शुरू होकर महाशिवरात्रि तक चलेगा.
- इस मेले में चार शाही स्नान होंगे.
- पहला शाही स्नान 13 जनवरी को होगा.
- दूसरा शाही स्नान 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर होगा.
- तीसरा शाही स्नान 29 जनवरी को मौनी अमावस्या पर होगा.
- चौथा शाही स्नान 2 फ़रवरी को बसंत पंचमी पर होगा.
- पांचवां शाही स्नान 12 फ़रवरी को माघ पूर्णिमा पर होगा.
- आखिरी शाही स्नान 26 फ़रवरी को महाशिवरात्रि पर होगा.
कुम्भ मेला का भविष्य
2025 में Prayagraj में होने वाला कुम्भ मेला एक और ऐतिहासिक घटना के रूप में दर्ज होगा। जैसे-जैसे यह मेला अपने इतिहास में और भी अधिक विस्तृत होता जा रहा है, वैसे-वैसे इसमें आने वाली भीड़ और श्रद्धा की भावना में भी वृद्धि हो रही है। कुम्भ मेला न केवल भारत में, बल्कि पूरे विश्व में हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति का एक अद्वितीय प्रतीक बन गया है।
निष्कर्ष
कुम्भ मेला एक अद्वितीय धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, जो न केवल भारत के लोगों के लिए, बल्कि समूचे विश्व के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुभव प्रदान करता है। यह मेला न केवल आध्यात्मिक उन्नति का अवसर है, बल्कि यह Indian culture और परंपराओं को जीवित रखने का भी एक बड़ा माध्यम है। समय के साथ यह मेला और भी बड़ा और भव्य होता जा रहा है, और इसमें भाग लेने वाले श्रद्धालु हर बार इस आयोजन से कुछ विशेष आध्यात्मिक अनुभव लेकर लौटते हैं।