भारत के युवा शतरंज खिलाड़ियों ने चैस ओलंपियाड में वो कर दिखाया, जो कुछ साल पहले तक भी दिग्गज ग्रैंडमास्टर विश्वनाथन आनंद के टीम में रहने के बावजूद संभव नहीं हो पाया था। आनंद, जो इस बार टीम का हिस्सा नहीं थे, लेकिन उनके जीवन का यह एक बेहद खुशी का पल होगा। भारत की पुरुष और महिला टीमों ने पहली बार गोल्ड मेडल जीते हैं, जो एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।
चेस ओलंपियाड में भारत की पहली गोल्ड जीत
इस बार चैस ओलंपियाड में भारत के खाते में दो गोल्ड मेडल दर्ज हुए हैं। पहले 44 एडिशंस में भारत ने केवल 3 ब्रॉन्ज मेडल जीते थे, लेकिन अब भारत ने अपनी श्रेष्ठता साबित की है। सचिन तेंदुलकर के उदाहरण से समझें, जब भारत में बल्लेबाजों की लाइन लग गई, ठीक उसी तरह शतरंज में विश्वनाथन आनंद ने भी एक नई लहर को जन्म दिया है।
आनंद ने 80 के दशक में जब खेलना शुरू किया, तब भारत में एक भी ग्रैंडमास्टर नहीं था। आज देश में 85 ग्रैंडमास्टर हैं, जो उनके प्रभाव का स्पष्ट संकेत है। आनंद के रहते भारतीय टीम गोल्ड नहीं जीत पाई, लेकिन उनकी मेहनत और प्रेरणा ने खिलाड़ियों को आत्मविश्वास दिया।
महिला और पुरुष टीमों की सफलता
पुरुष टीम ने अपने पहले मैच में शानदार प्रदर्शन किया। ग्रैंडमास्टर डी गुकेश, अर्जुन एरिगैसी और आर प्रग्नानंदा ने स्लोवेनिया के खिलाफ 11वें राउंड में अपने-अपने मैच जीतकर टीम की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
महिला टीम ने भी कमाल किया। उन्होंने अजरबेजान को 3.5-0.5 से हराकर स्वर्ण पदक अपने नाम किया। डी हरिका ने पहले बोर्ड पर तकनीकी श्रेष्ठता दिखाई, जबकि दिव्या देशमुख ने अपने प्रतिद्वंद्वी को पछाड़कर तीसरे बोर्ड पर व्यक्तिगत स्वर्ण पदक पक्का किया। आर वैशाली ने ड्रॉ खेला, लेकिन वंतिका अग्रवाल की शानदार जीत ने भारतीय टीम को स्वर्ण पदक दिलाने में मदद की।
पुरुष और महिला टीमों की composition
भारतीय पुरुष टीम में शामिल थे: अर्जुन एरिगैसी, विदित गुजराती, पी हरिकृष्णा, डी गुकेश और आर प्रग्नानंदा। वहीं, महिला टीम में शामिल थीं: तानिया सचदेव, वंतिका अग्रवाल, आर वैशाली, दिव्या देशमुख और डी हरिका।
इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि विश्वनाथन आनंद की प्रेरणा से ही भारत के युवा खिलाड़ियों ने ऐसा प्रदर्शन किया, जिससे न केवल उन्हें गोल्ड मेडल मिला, बल्कि पूरे देश का नाम भी रोशन हुआ।
आगे का रास्ता
अब भारत का लक्ष्य है कि वह अगले ओलंपियाड में और बेहतर प्रदर्शन करे। खिलाड़ियों की मेहनत और उनके समर्पण से यह संभव हो सकता है। विश्वनाथन आनंद का योगदान इस सफलता में महत्वपूर्ण रहा है, और उनका नाम हमेशा भारतीय शतरंज के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा।
इस उपलब्धि ने यह साबित कर दिया है कि यदि किसी क्षेत्र में उत्कृष्टता हासिल करनी है, तो मेहनत और समर्पण सबसे जरूरी हैं। भारत के युवा खिलाड़ियों ने एक नई शुरुआत की है, और उम्मीद है कि वे आने वाले समय में और भी बड़ी सफलताएँ हासिल करेंगे।
इस तरह, चैस ओलंपियाड में भारत ने एक नई पहचान बनाई है, और यह सफलता सिर्फ एक शुरुआत है। भारत की शतरंज यात्रा अब और भी रोमांचक होगी, और हम सभी को इस यात्रा का हिस्सा बनने का गर्व होना चाहिए।