यह एक सच्ची कहानी है संभागीय मुख्यालय से लगे ग्राम पंचायत खोलखमरा के ग्राम चाका निवासी हीरालाल महरा की । जो पिछले 15 बरस से दोनों हाथ नहीं होने के बाद भी ऑटो चलाकर अपने परिवार का पालन पोषण कर रहें हैं खोलखमरा निवासी हीरालाल महरा । जिन्होंने महज 7 वर्ष की उम्र में करंट लगने से अपने दोनों हाथ खो दिए । लेकिन उस कम उम्र में इतना बड़ा हादसा होने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी ।
समय का पहिया आगे बढ़ता गया और अब हीरालाल जीबचपन से ढलती उम्र के पायदान तक पहुँच चुके हैं । कोहनियों से दोनों हाथ कटे होने के बावजूद उन्होंने किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया और अपनी हिम्मत के बूते एक ऑटो खरीदा ,जिसे वह पिछले 15 साल से खुद ही चला रहें हैं । जो हर किसी के लिए प्रेरणा के श्रोत हैं ।
40 से 50 किलोमीटर हर दिन का सफ़र
पेशे से ऑटो चालक हीरालाल ने बताया कि वह प्रतिदिन अपने गाँव से ऑटो चलाकर शहडोल स्थित गंज मंडी आतें हैं ,यहाँ से वह हर दिन ग्राम मालाचुआ तक सवारी लेकर आते जातें है । वह प्रतिदिन करीब 40 से 50 किलोमीटर ऑटो चलाने के बाद अपने गाँव लौट जातें है । इतने में उन्हें किराया मिल जाता है ,उससे वह ख़ुशी ख़ुशी अपना परिवार चला रहें हैं । उन्हें न तो किसी आमजन से कोई शिकायत है और न ही ईश्वर से । मै अपने परिवार के साथ बहुत ही खुशी के साथ गुजर बसर कर रहा हूँ ।
विकलांगता नहीं बनी बाधक
हीरा लाल महारा पिता बालक दास 55 वर्ष निवासी ग्राम चाका ग्राम पंचायात खोलखमरा ने बताया कि बचपन में करंट लगने के बाद जब जिला चिकित्सालय शहडोल में मेरे दोनों हाथअ कोहनियों से काटकर अलग किए गये तो पूरा परिवार शोक में डूब गया था ,क्योंकी उस वक्त मेरी उम्र महज 7 वर्ष की थी । परिजनों को यही लग रहा था कि अपाहिज होने के बाद मेरा भविष्य क्या होगा । लेकिन परिवार का साथ मिला और मै धीरे धीरे एक दिन जवानी की दहलीज़ तक पहुँच गया । करीब 27 साल पहले वर्ष 1998 में परिजनों ने उमरिया जिले में मेरा रिश्ता तय किया । उस समय मुझे थोड़ा असहजता जरूर महसूस हुई ,लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी । एक शकुशल युवती के साथ मेरा विवाह हुआ । आज मेरे पांच बच्चे हैं ,जिसमे तीन पुत्र व दो पुत्रियाँ शामिल हैं । इनमे से तीन का विवाह भी मैंने कर दिया है ।
उन्होंने बताया कि करीब 15 वर्ष पहले मैंने स्वयं परिवार की मदद से एक ऑटो खरीदा । चूँकि मेरे हाथ नहीं थे तो मैंने ऑटो के एक्सीलेटर और गियर के लिए अलग से लोहे का रॉड लगवाया और फिर सड़क पर अपनी ऑटो उतार दी । जो आज तक निरंतर मै चला रहा हूँ । मै सामान्य ऑटो चालक की ही तरह ऑटो चलाता है ,सवारियां मेरे साथ बैठने में ज़रा सा भी नहीं हिचकती हैं । उन्हें मेरे ऊपर अब पूरा विशवास हो चुका है । इस तरह विवाह एवं जीविकोपार्जन के दौरान कभी मेरी विकलांगता बाधक नहीं बनी । मुझे सरकारी मदद के नाम पर केवल छह सौ रुपए विकलांगता पेंशन मिलती है ।
आज के इस युग में हीरालाल उन सभी दिव्यांगो के लिए प्रेरणाश्रोत है ,जो शारीरिक निः शक्तता को अपनी जिंदगी के लिए बोझ समझने लगतें हैं । हीरालाल के हौसलों को देखकर लगता है कि यदि इंसान कुछ करने का पक्का इरादा कर ले तो बड़ी से बड़ी बाधा भी उसे मंजिल तक पहुँचने से नहीं रोक सकती है ।