शासकीय विद्यालयों में व्यवस्थाएं शून्य है। जिले के अधिकतर विद्यालयों में नियमित या स्थाई चपरासी, सफाई कर्मी की कोई व्यवस्था नहीं है। अप्रैल माह में मनाए गए प्रवेश उत्सव मात्र दिखावे और फोटो तक ही सिमट कर रह गयें हैं। ऐसा लगता है की कभी भी जिले के वरिष्ठ अधिकारी अपने अपने अधीनस्थ ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों का निरीक्षण नहीं करते। जिसका खामियाजा छात्र छात्राओं को भुगतना पड़ रहा है ।
कई ऐसे विद्यालय हैं जहां पर इस भीषण गर्मी में कक्षा में पंखों की व्यवस्था नहीं है । अधिकतर विद्यालयों में बैठने के लिए पर्याप्त कक्ष भी नहीं है । जिससे शैक्षणिक कार्य में भी दिक्कत होती है । वहीँ अधिकाँश स्कूलों में स्वच्छ पीने के पानी की भी समुचित व्यवस्था नहीं है । विद्यालयों के शौचायलय गन्दगी से बजबजा रहें हैं और पानी की समस्या के चलते अधिकतर शौचालय पर ताला लटका हुआ है अधिकतर विद्यालयों में शिक्षक समय पर नहीं पहुंच रहे हैं। ग्रामीणों के पूछने पर कहते हैं कि बहुत सारे सरकारी काम होते हैं जो हमें करने होते हैं।
विद्यालयों में पिछले वर्ष विद्यार्थियों से ली जाने वाली फीस या अन्य जानकारी ली जाए तो परिणाम अपने आप निकाल कर सामने आएंगे , चाहे वह स्काउट की फीस हो रेड क्रॉस की फीस हो या फिर विद्यार्थियों के संपूर्ण शारीरिक विकास खेलकूद की फीस हो अगर यह तीनों चीज विद्यालयों पर संचालित नहीं है तो फिर इसे ली जाने वाली फीस की राशि कहां खर्च की जा रही है ,यह बड़ा सवाल है ।
जबकि कार्यालय पर कुछ प्रतिशत जमा कर शेष राशि विद्यालय के विद्यार्थियों पर उनके संपूर्ण शिक्षा विकास के लिए लगाई जानी चाहिए क्योंकि विद्यालयों पर विभिन्न प्रकार के मद होते हैं जो प्रभारी खर्च कर सकते हैं क्या उन्हें में यह राशि भी समाहित हो जाती है यह बहुत ही गंभीर और जांच का विषय है।
यदि वरिष्ठ कार्यालय में बैठे अधिकारी, या संकुल स्तर पर बैठे प्राचार्य, नियमित रूप से सप्ताह में 2 दिन भी अपने संकुल या विद्यालयों का भ्रमण करें तो छात्रों के हित पर कई समस्याओं का सामना समाधान उनके द्वारा कराया जा सकता है । बुढार जनपद विकास खंड अंतर्गत कई ऐसे संकुल केंद्र है जहां पर अतिथि शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया में भी मनमानी की गयी है ,इसकी जांच भी कराई जाना आवश्यक है ।