सोशल मीडिया पर वायरल ट्रिक्स
आजकल सोशल मीडिया पर कई ऐसी ट्रिक्स और टिप्स देखने को मिलती हैं जो रोजमर्रा की समस्याओं का हल बताती हैं। कई बार ये ट्रिक्स इतने आसान और प्रभावी लगते हैं कि इन पर विश्वास करना मुश्किल हो जाता है। लेकिन जैसा कि अक्सर कहा जाता है, “जो चमकता है, वो सोना नहीं होता।” सोशल मीडिया पर जो चीजें वायरल होती हैं, उनमें से कुछ सही होती हैं, लेकिन कई बार ये केवल भ्रम पैदा करती हैं। इसलिए, ऐसी किसी भी ट्रिक को आजमाने से पहले उसकी सच्चाई जान लेना बहुत जरूरी है।
कैसे वायरल हुई यह ट्रिक?
\एक महिला जैस्मिन द्वारा बनाई गई वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है। इस वीडियो में जैस्मिन ने दावा किया है कि सफर के दौरान अगर बच्चों को मोशन सिकनेस हो रही हो तो उनके पेट की नाभि पर बैंड-एड लगा देने से आराम मिल सकता है। जैस्मिन ने यह भी कहा कि उसे नहीं पता कि यह ट्रिक कैसे काम करती है, लेकिन उसके बच्चों पर यह काम कर चुकी है। उसकी मानें तो इस ट्रिक ने उसके साथ-साथ कई अन्य लोगों के सफर को भी आसान बना दिया है।
लोगों की प्रतिक्रियाएं
जैस्मिन के इस वीडियो पर सोशल मीडिया यूजर्स ने अलग-अलग प्रतिक्रियाएं दी हैं। एक यूजर मेलिसा नोनिस ने कहा कि एशिया में भी ऐसा ही किया जाता रहा है, जहां नवजात बच्चों की नाभि पर कपड़ा रखा जाता है ताकि उनके पेट में गैस न बने। मेलिसा के अनुसार, इस ट्रिक ने उनके बच्चे की भी मदद की थी। हालांकि, कुछ लोग इसे प्लेसीबो इफेक्ट बता रहे हैं।
प्लेसीबो इफेक्ट क्या है?
प्लेसीबो इफेक्ट तब होता है जब किसी व्यक्ति को लगता है कि बिना किसी एक्टिव मेडिकल ट्रीटमेंट के ही उसकी हालत में सुधार हो रहा है। यानी कि इलाज सिर्फ इसलिए काम करता है क्योंकि व्यक्ति को विश्वास होता है कि इलाज असर करेगा। हालांकि, इसका यह मतलब नहीं कि इलाज वास्तव में प्रभावी है। इस ट्रिक को लेकर भी कई लोग ऐसा ही मान रहे हैं कि हो सकता है यह सिर्फ एक प्लेसीबो इफेक्ट हो।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण क्या कहता है?
अब सवाल उठता है कि क्या इस ट्रिक को लेकर कोई वैज्ञानिक प्रमाण है? एक रिपोर्ट के मुताबिक, सीके बिड़ला अस्पताल में नियोनैटोलॉजी और पीडियाट्रिक्स की डायरेक्टर डॉ. पूनम सिदाना का कहना है कि बैंड-एड जैसी ट्रिक्स की प्रभावशीलता को साबित करने के लिए कोई ठोस वैज्ञानिक आधार नहीं है। उन्होंने कहा कि यह तरीका कुछ लोगों के लिए काम कर सकता है, लेकिन वैज्ञानिक समुदाय इसे मान्यता नहीं देता है। हालांकि, कई लोग अलग-अलग प्लेसीबो मेथड्स को आजमा चुके हैं, लेकिन इनकी प्रभावशीलता साबित करने के लिए कोई ट्रायल या अध्ययन उपलब्ध नहीं है।
क्या होता है मोशन सिकनेस?
मोशन सिकनेस तब होती है जब आपका मस्तिष्क आपके देखने और सुनने की जानकारी में असंगति महसूस करता है। इसका मतलब है कि अगर आप सफर के दौरान किसी गाड़ी में बैठे हैं और आपकी आंखों को स्थिरता का एहसास हो रहा है, लेकिन आपका कान शरीर की गति को महसूस कर रहा है, तो यह मस्तिष्क में भ्रम पैदा करता है। इससे उल्टी आना, चक्कर आना और मतली जैसी समस्याएं हो सकती हैं। कई बार यह स्थिति बहुत तकलीफदेह हो सकती है, खासकर बच्चों के लिए।
क्या बैंड-एड से मिल सकती है राहत?
इस बात का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि नाभि पर बैंड-एड लगाने से मोशन सिकनेस में राहत मिलती है। यह संभव है कि कुछ लोगों को यह तरीका इसलिए असरदार लगे क्योंकि वे मानते हैं कि इससे उन्हें राहत मिलेगी। ऐसे मामलों में प्लेसीबो इफेक्ट का होना संभव है। हालांकि, अगर आप इस ट्रिक को आजमाने का सोच रहे हैं, तो यह पूरी तरह से आपकी पसंद पर निर्भर करता है। लेकिन याद रखें कि यह कोई वैज्ञानिक रूप से मान्य तरीका नहीं है और बेहतर होगा कि आप मोशन सिकनेस के लिए डॉक्टर की सलाह लें या फिर दवाइयों का सहारा लें।