आजादी के शुभ मुहूर्त की कहानी: उज्जैन से दिल्ली तक
देश इस साल 78वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है, लेकिन एक सवाल हमेशा चर्चा में रहता है — भारत ने 15 अगस्त को ही स्वतंत्रता दिवस मनाने का फैसला क्यों किया? राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय कारणों के अलावा इसके पीछे एक धार्मिक पहलू भी जुड़ा है। वास्तव में, आजादी के ऐलान के लिए शुभ मुहूर्त तय करने में ज्योतिषीय गणना का सहारा लिया गया था। यह तिथि मध्यप्रदेश के उज्जैन निवासी पद्मभूषण पंडित सूर्यनारायण व्यास ने प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के कहने पर निकाली थी।
ऐसे तय हुआ 15 अगस्त का दिन
साल 1946 के अंत तक यह साफ हो चुका था कि भारत आजादी की ओर बढ़ रहा है। पं. जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्री और डॉ. राजेंद्र प्रसाद के राष्ट्रपति बनने की संभावना भी तय मानी जा रही थी। डॉ. प्रसाद, जो धार्मिक और आध्यात्मिक झुकाव वाले व्यक्ति थे, ने अपने करीबी गोस्वामी गणेश दत्त महाराज के माध्यम से पं. सूर्यनारायण व्यास को दिल्ली बुलवाया।
डॉ. प्रसाद ने पं. व्यास से कहा कि अंग्रेजों ने आजादी के लिए दो तिथियां दी हैं — 14 और 15 अगस्त। सवाल यह था कि ज्योतिष के अनुसार कौन सा दिन अधिक शुभ रहेगा। पं. व्यास ने पंचांग देखकर बताया कि 14 अगस्त को लग्न अस्थिर है, जो अशुभ माना जाता है, जबकि 15 अगस्त को लग्न स्थिर और अनुकूल है। इसी आधार पर 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में चुना गया और डॉ. प्रसाद ने इस पर सहमति दे दी।
आधी रात का ध्वजारोहण
पं. व्यास के पुत्र, लेखक और दूरदर्शन के पूर्व महानिदेशक राजशेखर व्यास के अनुसार, पं. व्यास ने डॉ. प्रसाद को सुझाव दिया कि जब आजादी का समय आधी रात है, तो उसी समय ध्वजारोहण किया जाए और सुबह औपचारिक कार्यक्रम हों। इस सलाह पर पं. नेहरू ने भी हामी भर दी और 15 अगस्त 1947 की आधी रात को लाल किले पर पहला ध्वजारोहण हुआ। पं. व्यास की राय से संसद भवन का शुद्धिकरण भी रात में ही कराया गया।
1930 में की थी आजादी की भविष्यवाणी
पं. सूर्यनारायण व्यास का जन्म 1902 में हुआ था और 1921 से वे स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हो गए थे। वे ज्योतिषी होने के साथ-साथ लेखक भी थे। कहा जाता है कि 1930 में ही उन्होंने भविष्यवाणी कर दी थी कि भारत अगस्त 1947 में आजाद होगा और डॉ. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति बनेंगे।
1952 में जब डॉ. प्रसाद का पहला कार्यकाल समाप्त हुआ, तो पं. व्यास ने उनसे कहा कि वे दूसरी बार भी राष्ट्रपति बनेंगे। यह भविष्यवाणी भी सच साबित हुई। डॉ. प्रसाद ने इस पर पं. व्यास को पत्र लिखकर स्वीकार किया कि उनकी बातें पूरी तरह सही साबित हुईं।
भारत के स्वतंत्रता दिवस की तारीख के पीछे छिपी यह कहानी न केवल ऐतिहासिक है, बल्कि यह बताती है कि कैसे राजनीतिक निर्णय में सांस्कृतिक और धार्मिक पहलू भी गहराई से जुड़े होते हैं।