तिब्बत में भारी भूकंप का कारण क्या था, जिसमें 126 लोगों की मौत हुई
तिब्बत में पिछले कुछ दशकों में कई भूकंप आ चुके हैं, जिनमें 1950 में आए 8.6 मैग्निट्यूड के भूकंप शामिल हैं। मंगलवार को तिब्बत के माउंट एवरेस्ट के पास एक शक्तिशाली भूकंप आया, जिसमें कम से कम 126 लोग मारे गए और 180 से अधिक लोग घायल हो गए। यह भूकंप तिब्बत के टिंगरी काउंटी में सुबह 6:35 बजे आया, जो माउंट एवरेस्ट से लगभग 80 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। इस भूकंप को चीनी अधिकारियों ने 6.8 की तीव्रता और अमेरिकी भूगर्भीय सर्वेक्षण ने 7.1 की तीव्रता दर्ज की। भूकंप के झटके नेपाल, भूटान और भारत के कुछ हिस्सों में भी महसूस किए गए।
भूकंप का कारण
यह भूकंप ल्हासा ब्लॉक में फटी दरार के कारण आया, जो एक ऐसा क्षेत्र है जो भारी भूगर्भीय तनाव में है। यह क्षेत्र भारतीय और यूरेशियाई टेक्टोनिक प्लेटों के बीच चल रहे टकराव के कारण भूकंपीय गतिविधियों का प्रमुख केंद्र बन गया है। यह प्रक्रिया पिछले 60 मिलियन वर्षों से हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं को आकार दे रही है।
टेक्टोनिक प्लेटों का प्रभाव
भारतीय प्लेट, जो यूरेशियाई प्लेट से टकराई है, धीरे-धीरे तिब्बत के नीचे अलग हो रही है, जैसा कि पिछले साल प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है। यह “स्लैब टियर” एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें भारतीय प्लेट की ऊपरी परत अपने घनी निचली परत से अलग हो जाती है, जिससे इस क्षेत्र में भारी भूकंपीय गतिविधियां होती हैं।
क्या हो सकता है भविष्य में?
यह फटना तिब्बत को दो भागों में बांट सकता है, हालांकि यह सतह पर कोई स्पष्ट दरार नहीं उत्पन्न करेगा। यह प्रक्रिया पृथ्वी की गहरी परतों के नीचे हो रही है, और यह क्षेत्र में होने वाली भूकंपीय गतिविधियों को प्रभावित कर सकती है। वैज्ञानिक वर्तमान में भूकंपीय तरंगों, गहरे परतों में होने वाले भूकंपों और गैसों के उत्सर्जन का अध्ययन कर रहे हैं ताकि इस टेक्टोनिक व्यवहार के संभावित प्रभावों को समझा जा सके।
इस प्रकार, तिब्बत में हुए इस बड़े भूकंप ने एक बार फिर से यह सिद्ध कर दिया है कि भारतीय और यूरेशियाई प्लेटों का टकराव हिमालय क्षेत्र में भूकंपीय गतिविधि को प्रभावित करता है, और यह क्षेत्र भविष्य में भी भूकंप के लिए संवेदनशील रह सकता है।