सीएम मोहन की बड़ी घोषणा, 11 गांवों के नाम बदले, शेखपुर अब अवधपुरी बना
मध्य प्रदेश में नाम बदलने का सिलसिला जारी है, और राज्य सरकार मुगल सल्तनत के समय के गांवों के नामों को बदलने में सक्रिय रूप से लगी हुई है। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने शाजापुर जिले के कालापीपल क्षेत्र में आयोजित एक कार्यक्रम में मंच से 11 गांवों के नाम बदलने की घोषणा की। इससे पहले उज्जैन के बड़नगर में आयोजित कार्यक्रम में भी मुख्यमंत्री ने तीन गांवों के नाम बदलने का ऐलान किया था।
11 गांवों के नाम बदले गए
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कालापीपल विधानसभा क्षेत्र के तहत लाडली बहन योजना के एक कार्यक्रम में शिरकत की, जहां कालापीपल के विधायक की मांग पर उन्होंने 11 गांवों के नाम बदलने की घोषणा की। अब ये गांव नए नामों से जाने जाएंगे, जिनमें मोहम्मदपुर मछनाई का नाम बदलकर मोहनपुर, ढाबला हुसैनपुर का नाम ढाबला राम, मोहम्मदपुर पंवाड़िया को रामपुर पंवाड़िया, खजुरी अलाहबाद को खजूरीराम, हाजीपुर को हीरापुर और निपानिया हिसामुद्दीन का नाम निपानिया देव रखा जाएगा। इसके अलावा रिछड़ी मुरादाबाद का नाम रिछड़ी, खलीलपुर का नाम रामपुर, उंचोद का नाम उंचावद, घट्टी मुख्तयारपुर का नाम घट्टी और शेखपुर बोंगी गांव का नाम अवधपुरी कर दिया जाएगा। यह नाम परिवर्तन मुगलों की याद दिलाने वाले गांवों के संदर्भ में किए गए हैं।
पहले भी बदले थे नाम
इससे पहले, 5 जनवरी को मुख्यमंत्री मोहन यादव ने उज्जैन जिले के तीन गांवों के नाम बदलने की घोषणा की थी। उन्होंने मंच से गजनीखेड़ी गांव का नाम चामुंडा महानगरी, मौलाना गांव का नाम विक्रम नगर और जहांगीरपुर गांव का नाम जगदीशपुर रखा था। इन नाम परिवर्तनों के बाद राज्य सरकार की ओर से और भी गांवों के नाम बदलने की योजना बनाई जा रही है।
कालापीपल का नाम भी हो सकता है बदल
सूत्रों के अनुसार, मध्य प्रदेश सरकार राज्य के अन्य जिलों के कुछ और गांवों के नाम बदलने की योजना बना रही है, जो मुगली सल्तनत से जुड़े हुए हैं। मुख्यमंत्री ने इस दौरान कालापीपल के नाम को लेकर भी सवाल उठाया। उन्होंने मंच से कहा, “मैंने आज तक काला पीपल नहीं देखा। आप विचार करके बताइए, कौन सा पीपल रखना है।” इसके साथ ही उन्होंने कालापीपल को तहसील से अनुभाग घोषित करने की भी घोषणा की।
यह बदलाव राज्य में एक नए रूप की ओर इशारा करता है, जिसमें मुगलों से जुड़ी ऐतिहासिक धरोहरों को नए नामों से प्रस्तुत किया जा रहा है। इससे राज्य के स्थानीय समुदायों में एक नई पहचान बनाने की कोशिश की जा रही है।