बावर्ची का बेटा बना राजा, अब कोर्ट से मिली 7 साल की सजा
छत्तीसगढ़ के सक्ती जिले में एक शाही परिवार से जुड़ा मामला चर्चा में है। राजा धर्मेंद्र सिंह, जो कभी एक बावर्ची के बेटे थे और बाद में सक्ती राजघराने के उत्तराधिकारी बने, को कोर्ट ने 7 साल की सजा सुनाई है। उन पर अप्राकृतिक रेप और जबरन घर में घुसने का गंभीर आरोप साबित हुआ है।
तीन साल पुराना मामला, अब आया अंजाम
यह मामला वर्ष 2022 में सामने आया था, जब राजघराने की ही एक महिला ने धर्मेंद्र सिंह पर अप्राकृतिक संबंध बनाने और जबरन घर में घुसने का आरोप लगाया था। शिकायत के बाद पुलिस ने जांच शुरू की और कोर्ट में चार्जशीट पेश की। अब, करीब तीन साल बाद कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए धर्मेंद्र सिंह को दोषी करार दिया है।
फास्ट ट्रैक कोर्ट का फैसला
मामले की गंभीरता को देखते हुए इसे फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुना गया। भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और 450 के तहत धर्मेंद्र सिंह को दोषी माना गया और 7 साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई। साथ ही, उन पर 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है।
राजघराने की गरिमा पर सवाल
धर्मेंद्र सिंह की पहचान एक राजनीतिक नेता और शाही परिवार के सदस्य के तौर पर रही है। वे स्थानीय पंचायत सदस्य भी रह चुके हैं। लेकिन अब जब उनके खिलाफ कोर्ट का फैसला आ गया है, तो पूरे राजपरिवार की साख पर भी सवाल उठ रहे हैं। कई लोग इस मामले को लेकर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं।
जब बावर्ची का बेटा बना शाही वारिस
धर्मेंद्र सिंह की पृष्ठभूमि पहले राजघराने से जुड़ी नहीं थी। बताया जाता है कि वे एक बावर्ची के बेटे थे। लेकिन सक्ती राजपरिवार के पूर्व राजा सुरेंद्र बहादुर सिंह ने उन्हें गोद लेकर उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। 2021 में उनका औपचारिक राज्याभिषेक भी हुआ और वे सक्ती रियासत के पांचवें राजा बने।
परिवार में नहीं थी स्वीकार्यता
हालांकि, धर्मेंद्र सिंह को राजपरिवार का हिस्सा मानने को लेकर भीतर ही मतभेद थे। खुद राजा सुरेंद्र बहादुर की पत्नी गीता राणा सिंह ने सार्वजनिक रूप से उन्हें अपना बेटा मानने से इंकार कर दिया था। इस बात ने भी कई बार परिवार में विवाद को जन्म दिया।
अब सलाखों के पीछे
21 मई 2025 को कोर्ट ने जैसे ही सजा सुनाई, धर्मेंद्र सिंह को तुरंत हिरासत में ले लिया गया और जेल भेज दिया गया। अब वह 7 साल तक सलाखों के पीछे रहेंगे।
इस फैसले ने यह दिखा दिया है कि चाहे कोई कितना भी ऊंचे पद पर हो, कानून सबके लिए एक जैसा है। अदालत का यह फैसला समाज को एक सख्त संदेश देता है कि अपराध करने वाला कोई भी हो, उसे सजा जरूर मिलेगी।