पपीते की खेती के लिए जरूरी बातें
पपीते की खेती से पहले मिट्टी का संरक्षण और उसका सही प्रबंधन करना बहुत जरूरी होता है। बुवाई से लगभग 15-20 दिन पहले मिट्टी को फॉर्मेलिन के घोल से उपचारित किया जाना चाहिए। इसके लिए 1.5-2% फॉर्मेलिन को 4-5 लीटर पानी में मिलाकर प्रति वर्ग मीटर मिट्टी में डालें, ताकि मिट्टी में मौजूद कीट और बीमारियां नष्ट हो सकें। इसके बाद मिट्टी को प्लास्टिक शीट से ढक दें और 4-5 सप्ताह तक मिट्टी का सोलराइजेशन (सूरज की गर्मी से मिट्टी को शुद्ध करना) करें। यह प्रक्रिया मिट्टी के अंदर कीटों और बीमारियों से फसल को बचाने में मदद करेगी।
मिट्टी में उपस्थित रोगाणुओं को नियंत्रित करने के लिए कैप्टन और थिरम जैसे कवकनाशी का उपयोग करना भी जरूरी है। 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के अनुपात में इनका घोल बनाकर मिट्टी में मिलाया जा सकता है। यह कदम फसल को रोगों से सुरक्षित रखता है और पैदावार को बेहतर बनाता है।
बीज और नर्सरी की तैयारी
पपीते की खेती के लिए बीज का सही चयन और तैयारी बहुत जरूरी है। बीज छह महीने से अधिक पुराना नहीं होना चाहिए। बीजों को बोने से पहले उन्हें 3 ग्राम कैप्टन के घोल से उपचारित करना बेहतर रहेगा, जिससे उन्हें बीमारियों से सुरक्षा मिलेगी। बीज को नर्सरी में डालने के बाद उसे मिट्टी की एक महीन परत से ढक देना चाहिए, ताकि नमी बरकरार रहे।
नर्सरी की मिट्टी को तैयार करने के लिए सड़ी हुई गोबर की खाद, पत्तियों की खाद और बालू के मिश्रण का उपयोग किया जा सकता है। यह मिश्रण मिट्टी की उर्वरकता बढ़ाने में मदद करता है और पौधों की जड़ों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करता है। खेती के लिए ऐसी जगह का चुनाव करना चाहिए, जहां बहुत तेज धूप न आए और न ही ज्यादा छाया हो, ताकि पौधे सही तरीके से बढ़ सकें।
पपीते की किस्में और उनके फायदे
पपीते की कई किस्में होती हैं, जो अलग-अलग जलवायु और क्षेत्रों के लिए उपयुक्त होती हैं। इनमें प्रमुख किस्में हैं पूसा जाइंट, कोयंबटूर-1, पूसा नन्हा, पूसा डिलीशियस, वाशिंगटन, सूर्या, पूसा ड्वार्फ और पंत पपीता। यदि आप पपीते को गमलों में उगाना चाहते हैं, तो पूसा नन्हा और पूसा ड्वार्फ जैसी किस्मों का चुनाव बेहतर रहेगा, क्योंकि ये किस्में छोटे आकार की होती हैं और गमलों में अच्छी तरह विकसित हो सकती हैं।
सिंचाई और देखभाल
पपीते के पौधों को सही समय पर पानी देना बहुत जरूरी है, लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि पानी पौधों के चारों ओर जमा न हो। पौधों के आसपास पानी भरने से जड़ों को नुकसान पहुंच सकता है और पौधे सड़ सकते हैं। खासतौर पर जब पौधे नए होते हैं, तब सिंचाई बहुत सावधानी से करनी चाहिए।
सिंचाई का सही अंतराल मौसम पर निर्भर करता है। गर्मियों के मौसम में 5-7 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए, जबकि सर्दियों में 10 दिन के अंतराल पर पानी देना बेहतर होता है। पौधों को नमी की जरूरत होती है, लेकिन ज्यादा पानी देना हानिकारक हो सकता है,