बेल की फसल में प्रमुख रोग और उनके प्रबंधन
बेल के पेड़ (Bael Crop) पर कई रोग लग सकते हैं, जिनका उचित प्रबंधन आवश्यक है। ये रोग न केवल फल और पत्तियों को प्रभावित करते हैं, बल्कि उत्पादन में भी कमी ला सकते हैं। बेल, जिसे बेलपत्र, बेलगिरी, और कैथा के नाम से भी जाना जाता है, कई औषधीय गुणों से भरपूर है। इसमें प्रोटीन और विटामिन जैसे महत्वपूर्ण तत्व होते हैं, जो कई बीमारियों की रोकथाम में सहायक होते हैं।
1. पाउडरी मिल्ड्यू (Powdery Mildew)
यह एक कवक रोग है, जिसमें बेल के पेड़ की पत्तियों और टहनियों पर सफेद पाउडर जैसा पदार्थ दिखाई देता है।
प्रबंधन के तरीके:
- प्रभावित शाखाओं को समय-समय पर काटें।
- सल्फर कवकनाशी का छिड़काव करें।
- नमी को कम करने के लिए अधिक पानी देने से बचें।
2. एन्थ्रेक्नोज (Anthracnose)
इस रोग में पत्तियों, फलों और तनों पर काले धंसे हुए घाव नजर आते हैं।
प्रबंधन के तरीके:
- संक्रमित हिस्सों की कटाई करें।
- तांबा आधारित फफूंदनाशकों का उपयोग करें।
- पेड़ों के बीच उचित दूरी बनाए रखें ताकि हवा का संचार सही ढंग से हो सके।
3. काले धब्बे (Black Spot)
बेल की पत्तियों के दोनों तरफ काले धब्बे दिखाई देते हैं, जो काली फफूंदी के कारण होते हैं।
प्रबंधन के तरीके:
- कार्बेंडाजीम या कार्बेंडाजीम + मैनकोजेब का मिश्रण बनाकर प्रति लीटर पानी में दो ग्राम मात्रा घोलकर छिड़काव करें।
4. बैक्टीरियल ब्लाइट (Bacterial Blight)
इस रोग में पत्तियों पर काले घाव बनते हैं, जो पानी से लथपथ रहते हैं और पत्ते झड़ने लगते हैं।
प्रबंधन के तरीके:
- संक्रमित शाखाओं को तुरंत जला दें।
- एक लीटर पानी में 2.5 ग्राम तांबा आधारित जीवाणुनाशक जैसे कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का घोल बनाकर छिड़काव करें।
5. जड़ सड़न (Root Rot)
यह मृदा जनित बीमारी है, जो पेड़ की जड़ों को प्रभावित करती है। इससे पौधे मुरझा जाते हैं और पौधों की वृद्धि रुक जाती है।
प्रबंधन के तरीके:
- जलभराव को रोकें।
- ऊंची क्यारियों में बेल के पेड़ लगाएं।
- पौधों को अत्यधिक पानी देने से बचें।
इन रोगों का समय रहते प्रबंधन करना बेहद जरूरी है, ताकि बेल के उत्पादन पर कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े। सही तकनीकों और उचित देखभाल से किसान अपनी बेल की फसल को स्वस्थ और उत्पादक बना सकते हैं।