शहरों में बढ़ रहा मायोपिया का खतरा: स्क्रीन टाइम और आउटडोर एक्टिविटी पर चिंता
1999 में 5-15 साल के बच्चों में मायोपिया के मामले 4.44% थे, जो 2019 में 21.15% तक पहुंच गए। अनुमान है कि यह 2050 तक 48.14% तक बढ़ सकता है।
तमिलनाडु सरकार स्कूलों में वार्षिक नेत्र जांच कराती है। लगभग 7% छात्रों में मायोपिया पाया गया, लेकिन केवल 20% छात्र दिए गए चश्मे का उपयोग करते हैं।
50-60% बच्चों में डिजिटल स्क्रीन के कारण Digital Eye Strain (DES) की समस्या है। यह मायोपिया के बढ़ने में बड़ा कारण है।
– DIMS तकनीक वाले मल्टीफोकल कॉन्टैक्ट लेंस
– लो-डोज एट्रोपिन आई ड्रॉप्स
ये इलाज मायोपिया की प्रगति को धीमा कर सकते हैं।
इलाज और नई तकनीक
जनवरी 4, 2025 को चेन्नई में डॉ. अग्रवाल आई हॉस्पिटल मायोपिया पर एक मरीज सम्मेलन आयोजित करेगा।
जागरूकता जरूरी
– स्क्रीन टाइम कम करें
– बच्चों को आउटडोर एक्टिविटी के लिए प्रेरित करें
– चश्मे की गुणवत्ता सुधारें और उपयोगिता बढ़ाएं।
समाधान क्या है?
आइए, मायोपिया से बचाव के लिए जागरूक बनें। अपनी आंखों का ख्याल रखें!
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