अश्वगंधा (Ashwagandha), जो भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धति (Indian traditional medicine system) और यूनानी चिकित्सा पद्धति (Unani System of Medicine) में महत्वपूर्ण है, के पत्ते, जड़ और फल सभी बेचकर अच्छी कमाई की जा सकती है। यह एक औषधीय पौधा (Medicinal Plant) है, जिसकी मांग लगातार बनी रहती है, खासकर कोरोना महामारी के बाद इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए इसकी उपयोगिता बढ़ गई है। अश्वगंधा का इस्तेमाल पाउडर, दवाओं और कैप्सूल के रूप में किया जाता है, और इसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी भारी मांग है।
खेती के लिए आवश्यक बातें
अश्वगंधा की खेती के लिए लाल मिट्टी या बलुई दोमट मिट्टी सबसे बेहतर होती है। मिट्टी का पीएच मान 7.5 से 8 के बीच होना चाहिए, जिसकी जांच नजदीकी कृषि विभाग कार्यालय से कराई जा सकती है। पर्वतीय क्षेत्रों में भी इसकी खेती की जा सकती है, जहां उपजाऊ भूमि कम हो।
खेती की शुरुआत में मिट्टी को अच्छी तरह से तैयार करना आवश्यक है, जिसके लिए खेत की दो बार जुताई करनी चाहिए। इसके बाद जैविक खाद डालें ताकि पौधों का विकास बेहतर हो सके। अश्वगंधा के पौधों के लिए 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है, और खेतों में नमी बनाए रखना भी महत्वपूर्ण है।
सिंचाई का ध्यान रखना भी जरूरी है। पहली सिंचाई के 15 से 20 दिन बाद दूसरी सिंचाई करें, और बारिश होने पर अतिरिक्त पानी देने की जरूरत नहीं होगी। बुवाई के बाद फसल की पैदावार में 5 से 6 महीने का समय लग सकता है।
कमाई की संभावना
अश्वगंधा की खेती से किसान लाखों रुपये कमा रहे हैं, क्योंकि बाजार में इसकी कीमत लगभग 600 रुपये प्रति किलो के आसपास है। इसके बढ़ते उपयोग के साथ, अश्वगंधा की खेती किसानों के लिए एक लाभदायक व्यवसाय बन गया है, जो न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी मांग में है।