Ajmer Dargah Controversy: ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह को लेकर मंदिर बनाने की याचिका पर हंगामा
दरगाह के प्रशासकों और खादिमों की नाराजगी
Ajmer Dargah Controversy: अजमेर शरीफ दरगाह के “वंशानुगत प्रशासक” और खादिमों के संगठन ने उस याचिका की कड़ी निंदा की है, जिसमें दरगाह को मंदिर घोषित करने की मांग की गई है। खादीमों का आरोप है कि यह याचिका देश में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने और मुसलमानों को अलग-थलग करने की साजिश का हिस्सा है।
अदालत ने मांगा जवाब
अजमेर की स्थानीय अदालत ने दरगाह कमेटी, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से इस याचिका पर जवाब मांगा है। याचिकाकर्ता हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने दावा किया है कि दरगाह एक प्राचीन शिव मंदिर के अवशेषों पर बनाई गई थी, जिसे “मुस्लिम आक्रमणकारियों” ने नष्ट कर दिया था।
दरगाह प्रशासन की प्रतिक्रिया
दरगाह के वंशानुगत प्रशासक हाजी सैयद सलमान चिश्ती ने कहा, “अदालतों और धार्मिक भावनाओं का दुरुपयोग करना सांप्रदायिक एकता को तोड़ने और संविधानिक मूल्यों को कमजोर करने की कोशिश है। दरगाह ख्वाजा गरीब नवाज की पवित्र परंपराओं को बचाने और सौहार्द बनाए रखने के लिए सरकार और न्यायपालिका को ठोस कदम उठाने चाहिए।”
खादीम संगठन ने जताई चिंता
दरगाह के खादीम संगठन के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने कहा कि यह याचिका 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का उल्लंघन है। उन्होंने कहा, “दरगाह अल्पसंख्यक मंत्रालय के अधीन आती है, और ASI का इससे कोई लेना-देना नहीं है। याचिका का उद्देश्य समाज को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करना है।”
सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश
दरगाह के खादीमों का कहना है कि यह विवाद देश में सांप्रदायिक सौहार्द को कमजोर करने की साजिश का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि दरगाह ख्वाजा गरीब नवाज न केवल मुसलमानों बल्कि हिंदुओं के लिए भी आस्था का केंद्र है।
1991 का कानून और याचिका पर सवाल
संविधान विशेषज्ञों और पूर्व न्यायाधीशों ने पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के तहत इस याचिका की वैधता पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि यह कानून 1947 के बाद पूजा स्थलों की स्थिति में बदलाव की अनुमति नहीं देता।
प्रधानमंत्री और न्यायपालिका से अपील
संयुक्त मुस्लिम फोरम राजस्थान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सर्वोच्च न्यायालय से हस्तक्षेप की मांग की है। उन्होंने कहा कि ऐसे मामले सांप्रदायिक तनाव पैदा कर सकते हैं और देश के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं।
निष्कर्ष
अजमेर दरगाह विवाद न केवल धार्मिक आस्थाओं का सवाल है, बल्कि यह देश की सांप्रदायिक एकता और संवैधानिक मूल्यों की परीक्षा भी है। देश के नेताओं और न्यायपालिका से उम्मीद है कि वे इस मुद्दे पर निर्णायक कदम उठाएंगे।